Wooden dholak and brass ghunghrus are the only luck. | काठ की ढोलक, पीतल के घुंघरू ही नसीब: बिपासा बासु, डिनो मोरिया संग काम किया, जिस्मफरोशी से बचने के लिए किन्नर मंडली में लौटी

नई दिल्ली8 दिन पहलेलेखक: मरजिया जाफर

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मैं लतिका रंधावा हरियाणा के अंबाला शहर से हूं। मम्मी-पापा जालंधर के हैं, लेकिन अब दिल्ली में रहते हैं। मैं एक सम्पन्न परिवार से आती हूं। बचपन से ही मेरे अंदर लड़कों से अलग फीलिंग थी। तब तक मेरी मम्मी-पापा को इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि आखिर मेरे अंदर नर है या नारी।

एक बार मैं अपने किन्नर समाज से मिली तो उन लोगों से मिलकर मैं उनसे अट्रैक्ट होने लगी। उस वक्त तक मुझे खुद नहीं जानती थी कि मैं भी इसी समाज का हिस्सा हूं, किन्नर समाज कहीं न कहीं मुझे अपनी तरफ खींच रहा है। इसके चलते 7-8 साल की कम उम्र में ही मैंने अपना घर छोड़ किन्नर समाज को अपना लिया। घर छोड़ने के बाद मैं अपने ही समाज की एक किन्नर के साथ रहने लगी, लेकिन उनका रवैया मेरे लिए बहुत ही क्रूर था। वो मुझे मारती-पीटती, घर का सारा काम कराती। दिन भर मैं उनकी सेवा मे लगी रहती। काफी दिनों तक यह सब झेलने के बाद मेरी मुलाकात एक ऐसे शख्स से हुई जिसने मेरी हर तरह से मदद की।

मुझे उससे प्यार हो गया…

एक लड़के से मुलाकात हुई। उसने मुझे हर तरह से सपोर्ट किया। पैसों से मेरी मदद की। मेरे दिल में उसके लिए फीलिंग पैदा हो गई। मुझे प्यार हो गया। 11 साल एक दूसरे के साथ गुजारे। जब मैं उसके साथ थी तो वो मुझे घर में बंद करके जाता। मारता-पीटता। लेकिन दुनिया के सामने प्यार का दिखावा करता था। मैं भी मजबूर थी, मेरे सामने कोई रास्ता ही नहीं बचा था। 11 साल इसलिए भी काटे क्योंकि मैं कोई जिस्मफरोशी नहीं करना चाहती थी और न ही किसी किन्नर मंडली में शामिल होना चाहती। क्योंकि नाचने गाने से मुझे नफरत थी। जब हालात बर्दाश्त से बाहर होने लगे तो एक ऐसा वक्त आया कि वो मुझे छोड़कर चला गया।

मुझे मंडली के साथ नाचना गाना पसंद नहीं था, मैं हमेशा घरेलू जिंदगी गुजारना चाहती थी।

मुझे मंडली के साथ नाचना गाना पसंद नहीं था, मैं हमेशा घरेलू जिंदगी गुजारना चाहती थी।

एक्टर-एक्ट्रेस के साथ काम करने का मौका मिला

लेकिन उसके साथ साथ रहते हुए मैंने कई कामयाबियां भी हासिल की। मैंने एक ब्यूटी पेजेंट ट्रांस क्वीन इंडिया में ऑडिशन दिया। ऑडिशन के लिए गई तो मुझे कहा गया अब तक तुम कहां थी? ट्रांस क्वीन इंडिया पेजेंट का खिताब जीतने के बाद मुझे बड़े बड़े डिजाइनर, एक्टर, एक्ट्रेस के साथ काम करने का मौका मिला। जैसे डीनू मोरिया, बिपाश बासु। इसके अलावा काफी सीनियर आर्टिस्ट के साथ काम करने का मौका मिला। नेशनल टीवी शो का अहम हिस्सा बनी।

बाप की उम्र के बंदे के साथ सोना पड़ा

जब वो मुझे छोड़कर चला गया तो मुझे न चाहते हुए मजबूरन जिश्मफरोशी में आना पड़ा। वहां मैंने देखा कि छोटी छोटी उम्र की लड़कियों के प्राइवेट पार्ट में साबूत नींबू डाल दिया जाता था ताकि वो जल्दी से बड़ी हो जाएं और कस्टमर अटैंड करना शुरू कर दें। ये सब देखकर मेरे तो रौंगटे खड़े हो गए।

मुझे बहुत बुरा लगता था, दर्द में मासूम बच्चियां करहाती रहतीं। लेकिन पेट की खातिर बाप की उम्र के व्यक्ति के साथ सोतीं। मैं हमेशा से एक सक्सेसफुल मॉडल नहीं तो कम से कम हाउस वाइफ बनकर जिंदगी गुजारना चाहती थी। लेकिन नसीब में तो दर दर की ठोकरें खानी लिखी थीं।

कामयाबी मेरे कदम चूमती रही

यह सब चल ही रहा था कि मेरी मुलाकात एक ऐसे शख्स से हुई, जिससे मेरी दोस्ती हो गई। उसने मुझसे कहा कि तुम बॉलीवुड में जाओ वहां तुमको काम मिल जाएगा। मैंने फिल्म इंडस्ट्री में ट्राई करना शुरू किया। वहां पहुंचने के बाद कामयाबी मेरे कदम चूमती रही। मैं आगे बढ़ती रही। लक्मे फैशन वीक का हिस्सा बनी जो मेरे लिए सपने के पूरे होने जैसा था।

वापस किन्नर समाज में लौट आई

अक्सर शो के लिए मुझे एक शहर से दूसरे शहर जाना पड़ता। एक शो के लिए मैं होटल के कमरे में रूकी थी तो मैंने देखा जिस बंदे ने मुझे यह शो दिलाया था वही मेरे बेड पर बगल में आकर लेट गया। यह देखकर मैं घबरा गई। भागकर रिसेप्शन पर पहुंची और शो छोड़कर वापस आ गई। मैंने उसी दिन सोच लिया था कि जब घूम फिर कर जिस्मफरोशी ही करना है तो ये भी फील्ड मेरे काबिल नहीं है। मैंने फैसला किया और थक हार कर वापस किन्नर समाज में लौट आई।

काठ की ढोलक, पीतल के घुंघरू ही नसीब

किन्नर समान में लौटने के बाद मुझे वही करना पड़ा जो मैं नहीं करना चाहती थी। मेरे नसीब में काठ की ढोलक, पीतल के घूंघरू ही लिखे थे। फिर से किन्नरों की दुनिया में वापस आ गई। खैर मैंने दिल पर पत्थर रखकर दोबारा खुद को उसी महौल में ढालना शुरू कर दिया। इस दौरान मैं सोशल वर्क करने लगी। जो मेरे गुरू को गवारा नहीं था। मैंने एमएलए का चुनाव भी लड़ा और मुझे सिर्फ 2000 वोट मिले। चुनाव तो हार गई लेकिन 2000 वोट पाना मेरे लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं थी। लेकिन एक दिन मेरी गुरू ने मुझे बुलाकर कहा कि तुम टोली के जो ड्राइवर उसके सो जाया करो। लेकिन जिंदगी किस तरफ ले जा रही है कुछ समझ नहीं आ रहा था। यह सब झेलते-झेलते मैं परेशान हो गई। मैंने बगावत करना शुरू कर दिया।

गुरु से की बगावत

बगावत के बाद मैं अपने गुरु से अलग हो गई। उन सबने मुझे मारा-पीटा पुलिस केस हुआ। सारे स्ट्रगल के बीच मैं अपने करियर को लेकर कभी लापरवाह नहीं रही। किन्नर मंडली को लगा कि मैं खुलकर बगावत पर उतर आई हूं।

ट्रांसजेंडर बच्चों के लिए काम करती हूं

अब मैं ट्रांसजेंडर बच्चों के लिए काम करती हूं। उन बच्चों को कोई गलत तरीके से इस्तेमाल न कर सके इसलिए उन्हें जागरूक बनाती हूं। साथ ही अपना काम टोली-बधाई करके पैसे कमाती हूं। दरअसल किन्नर समाज में एक परंपरा है कि अलग-अलग मंडलियों ने अपना-अपना मांगने का इलाका बना लिया। मैंने भी गुरू से अपने एरिया की मांग की। मेरा मानना है जो किन्नर हैं वो कहीं भी किसी को आशीर्वाद देकर बधाई मांग सकता है। किसी एक इलाके पर किसी एक का हक कैसे हो सकता है। एरिया को लेकर मेरे गुरू से मेरी लड़ाई अब तक जारी है। मेरा मानना है कि आप किसी भी जेंडर से क्यों न हो लेकिन आत्मनिर्भर बनना हरेक के लिए बेहद जरूरी है। उसके लिए जितना भी संघर्ष करना पड़े करो कामयाबी जरूर मिलेगी।

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