नई दिल्ली6 घंटे पहलेलेखक: मरजिया जाफर
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एक ऐसी लड़की जो बेहद खूबसूरत और जिंदादिल थी। बेबाक, बेखौफ जिंदगी जीने वाली। लेकिन साल 2009 उसके लिए अभिशाप बनकर आया। वो उम्र के खूबसूरत पड़ाव में थी जब लड़कियां अपने सपने पूरे करने के लिए जी तोड़ मेहनत करती हैं। इस आस में कि एक दिन उनकी मेहनत सफलता की उड़ान भरेगी। शाहीन अपने सपनों को पूरा करने के लिए नौकरी करते हुए एमबीए की पढ़ाई कर रही थीं लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था…।
दैनिक भास्कर की ये मैं हूं सीरीज में जानिए एसिड सर्वाइवर शाहीन मलिक की दर्द की दास्तां उन्हीं के लफ्जों में।
मैं शाहीन हूं…काम है परवाज मेरा… मेरे सामने आसमां और भी हैं…
ये सिर्फ लफ्ज नहीं बल्कि मेरी ताकत और हिम्मत हैं क्योंकि मैं उड़ना चाहती थी। लेकिन मेरे पंख 19 नवंबर 2009 को किसी ने जला दिए। मुझे मिट्टी में मिलाने की कोशिश की गई। मैं गिरी पर बिखरी नहीं, खुद को संभाला, अपने जले पंखों पर से दर्द की राख को झाड़ते हुए फिर से उड़ने का हौसला पाया और आज मैं उड़ रही हूं।
दहलीज के बाहर जाने पर पाबंदी
मैं सिर्फ एसिड अटैक सर्वाइवर नहीं बल्कि ऐसी फैमिली से आती हूं जहां लड़कियों की पढ़ाने लिखाने पर तवज्जो नहीं दी जाती। लड़कियों के दहलीज के बाहर जाने तक पर पाबंदी होती है। इसी लड़ाई के साथ जिंदगी की शुरुआत हुई। मेरी सहेलियों से उनके परिवार वाले घर में रहने को कहते तो वो मान जाती लेकिन मेरे मन में चार दीवारी की कैद को लेकर सवालों का सैलाब उठता रहता। जिंदगी और उस पर लगी पबंदियों के कशमकश जूझते हुए मैंने 2007 में घर छोड़ दिया।
किसी भी एसिड सर्वाइवर की लड़ाई मेरी लड़ाई है, मैं उन लड़कियों का हौसला हूं जिसके साथ ये बदसूरत हादसा पेश आया है।
घर छोड़ना मेरी जिंदगी का पहला बड़ा फैसला
घर छोड़ना मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा फैसला था। एक ऐसी लड़की ने घर छोड़ने का फैसला किया जिसने अकेले कभी घर की दहलीज पार भी नहीं की थी। दुनिया के तौर तरीकों से मैं अंजान थी। हाथ में कोई हुनर भी नहीं था जिसके सहारे जिंदगी गुजारी जाए। दिल में सपने और एक मकसद मुझे कुछ करना है, आगे बढ़ना है।
मैं आम जिंदगी नहीं जीना चाहती
मैं कुछ ऐसा करना चाहती थी कि आने वाली नस्ल मुझे याद करे। मैं कोई आम जिंदगी नहीं जीना चाहती थी। हमेशा से बहुत बोल्ड थी। पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी पानीपत, हरियाण में एमबीए में एडमिशन ले लिया। मैं पढ़ाई के साथ स्टूडेंट काउंसलिंग भी करती थी।
उसने मेरे चेहरे पर एसिड डाल दिया
एक दिन शाम 6 बजे ऑफिस से बाहर निकल रही थी। उसी दौरान मुझे एक लड़का दिखा, जो चेहरे पर रूमाल बांध-कर खड़ा था। सड़क क्रॉस करने के लिए जैसे ही मैं उस लड़के के बगल में जाकर खड़ी हुई, उसने मेरे चेहरे पर हरे रंग का लिक्विड डाल दिया। मेरे ही कलिग्स और उनके कॉलेज के 4 छात्रों ने मिलकर एसिड अटैक किया।
मुझे समझ नहीं आया कि ये क्या है। इससे पहले मैंने एसिड को इतने पास से कभी नहीं देखा था। वो दिन मुझे आज भी याद है। मैं कभी भूल नहीं सकती। कुछ ही वक्त में महसूस हुआ कि चेहरे डाला गया वो हरा पानी तेजाब है। मेरे सोचने समझने की ताकत खत्म हो गई। मैं सिर्फ चीख रही थी। उस भयानक चीख को याद करके आज भी मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
चेहरा 90 प्रतिशत झुलस चुका था
मेरी बर्बादी का तमाशा पास खड़े लोग देख रहे थे। लेकिन कोई मुझे अस्पताल नहीं ले गया। जैसे-तैसे करके अस्पताल पहुंची तो वहां मेरे सारे कपड़े काटकर उतारे गए। सर्दियों के मौसम में मुझे इतने ठंडे पानी से नहलाया गया कि पानी की हर बूंद सुई की तरह चुभ रही थी। देर इतनी हो गई कि एसिड अपना असर दिखा चुका था, चेहरा 90 प्रतिशत जलकर झुलस चुका था, आंखें खराब हो चुकी थीं, मैं कुछ देख नहीं पा रही थी।
एंबुलेंस की आवाज कानों में गूंज रही थी
मुझे डॉक्टर ने दिल्ली एम्स के लिए रेफर कर दिया, लेकिन मुझे एम्स न ले जाकर रोहतक ले जाया गया। मुझे अस्पताल ले जाने वालों में वो लोग भी शामिल थे, जो मेरी इस हालत के लिए जिम्मेदार थे। वे मुझे दिल्ली लाते हुए डर रहे थे कि कोई केस न बन जाए। शाम 6 बजे से रात के 11 बज गए और मेरी कानों में एंबुलेंस की आवाज गूंज रही थी।
कोई इलाज को तैयार नहीं
इस समय मुझे मेरा घर याद आ रहा था। मैंने किसी से कहा…प्लीज मेरे घर पर फोन कर दो। घर पर फोन गया तो भाई ने फोन उठाया। खबर मिलते ही वो भागकर मेरे पास पहुंचा और मुझे दिल्ली लेकर आया। हम एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल के चक्कर काट रहे थे। कोई अस्पताल इलाज करने के लिए तैयार नहीं था। सबका यही कहना था कि यह पुलिस केस है। बिना पुलिस की मौजूदगी के इलाज शुरू नहीं कर सकते। जल्दी इलाज कराना है तो पांच लाख रुपए तुरंत जमा कराओ। एक मिडिल क्लास फैमिली के लिए रातोंरात पांच लाख रुपए जमा करना आसान बात नहीं। लेकिन मेरे परिवार वाले मुझे मरते नहीं देख पाते इसलिए उन्होंने न जाने कहां से इतने पैसों इंतजाम करके मेरा इलाज शुरू कराया।
मैं खूबसूरत थी, लोग मुझसे जलते
मेरे साथ एसिड अटैक होने की कई वजह थीं। मैं पढ़ाई में बहुत होशियार, दिखने में खूबसूरत थी। मेरी यही खासियत मेरी दुश्मन बन गई। मेरे साथी ही मुझे लेकर चिढ़ते। मैं सोच भी नहीं सकती कि उनकी चिढ़ की हद तेजाब हो सकती है। उन्होंने जलता जहर चेहरे पर डालकर मेरी जिंदगी, मेरे सपनों और मेरी ख्वाहिशों के परों को जलाकर खाक कर दिया।
मुझे अपने चेहरे से नफरत हो गई
जब मैंने अपना चेहरा आईने में देखा तो मैं दीवार से सिर टिकाकर बैठ गई। सोचने लगी, मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ। मुझे अपने चेहरे से घिन आ रही थी। आज मैं जैसी दिख रही हूं ये 25 सर्जरी के बाद का चेहरा है। जरा सोचिए जब 25 सर्जरी मेरा चेहरा नहीं ठीक कर सकी तो तब ताजा-ताजा जला चेहरा कैसा दिखता होगा। हर सर्जरी मुझे 19 नवंबर 2009 की दर्दनाक याद दिलाती है। 20 रुपए की एसिड की बोतल ने मेरी जिंदगी के दस साल, मेरी फैमिली के 20 लाख रुपए और बीसियों सपनों को बर्बाद कर दिया। मेरे नाम के दिव्यांग शब्द चिपक गया।
कई रातें जाग कर गुजारी
इलाज के बाद मैं अपनी नॉर्मल जिंदगी में लौटी, उसी घर में आई जहां मैं रहा करती थी, लेकिन इस बार बहुत कुछ खोकर लौटी थी। मेरा खूबसूरत चेहरा, मेरी आंखें, एसिड अटैक से जुड़ा दर्द लेकर लौटी मैं अपने जले होंठों के साथ बोल भी नहीं पाती थी। कई रातें जागकर गुजारी। खाना-पीना भी दुश्वार था। मन और शरीर दोनों ही दुखते थे।
आखिर मैंने ऐसा क्या किया…
मैंने डॉक्टर से बात की, तो डॉक्टर ने साफ कह दिया कि हम आपका चेहरा तो सही नहीं कर सकते। लेकिन इतना कर सकते हैं कि समाज आपको अपना ले।
दरअसल, डॉक्टरों को मेरी हालत से कोई लेना देना नहीं था। उन्हें मेरी बर्बादी का किस्सा सुनने में ज्यादा इंट्रेस्ट था। सभी ये जानना चाहते कि आखिर मैंने ऐसा क्या किया कि मुझे पर एसिड अटैक हुआ।
मैंने घर छोड़ा इसलिए एसिड अटैक का ठिकरा मेरे ही सिर पर फोड़ दिया गया। मैं साढ़े तीन साल तक छत पर नहीं गई। कमरे में खुद को बंद करके रखा।
चेहरा इतना घिनौना कि मुझे ही डरा गया
मैं रोज-ब-रोज डिप्रेशन की तरफ जा रही थी। मुझे कोई बात खुशी नहीं देती। सुंदर दिखने वाली लड़की रातोंरात अचानक इतना डरावनी कैसे हो गई? मेरा कॉन्फिडेंस चला गया। जीना भूल गई। मेरा डिप्रेशन मुझ पर इतना हावी हो गया कि घर में जितनी भी दवाइयां रखी थीं मैंने सब एक साथ निगल ली। दवा खाने के बाद मेरी हालत इतनी खराब हो गई कि अस्पताल पहुंच गई। जब मैं होश में आई तब मुझे एहसास हुआ कि मुझे यह कदम नहीं उठाना चाहिए था।
मेरे नसीब में जिंदगी लिखी है
मुझे धीरे-धीरे समझ में आने लगा था कि ऊपर वाले का मेरे ऊपर बहुत करम है। उसकी ही दुआ का असर है कि मैंने घर छोड़ा, एसिड अटैक झेला, खुदकुशी करनी चाही, लेकिन फिर भी मौत नहीं आई। इसका मतलब मेरे नसीब में हयात यानी जिंदगी है। ऊपर वाला मुझे जिंदा रखना चाहता है। मैंने आंखों के इलाज के लिए चेहरे को कवर करके नौकरी की तलाश जारी रखी। 2013 में मुझे एक एनजीओ से कॉल आई, जहां एसिड सर्वाइवर को ही जॉब मिलता था। मैंने उस नौकरी के लिए फौरन ’हां’ कर दी। वहां जाकर मुझे मेरे जैसी बहुत लड़कियां मिली। जिसके बाद मन में ख्याल आया कि एसिड को बैन करना चाहिए जो किसी को जिंदगी भर का दर्द दे सकता है।
मैं अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रही हूं
यहां से मेरी जिंदगी को नया रास्ता मिला जिस पर चलकर मैं अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रही हूं। अब मैं एसिड सर्वाइवर के लिए काम करती हूं। एसिड सर्वाइवर का इलाज कराया। सरकार से मुआवजा दिलाने के लिए दौड़ी। यह सब काम करने के बाद दिल को बहुत सुकून और ठंडक मिली। मुझे एहसास हुआ कि मेरे दिल को यहीं तसल्ली और खुशी मिलेगी।
शुरू किया खुद का NGO
साल 2021 में मैंने खुद की संस्था शुरू की। इस संस्था का नाम मैंने ‘ब्रेव सोल्स फाउंडेशन’ रखा। एनजीओ और उसके शेल्टर होम, यानी ‘अपना घर’ के जरिए 300 से ज्यादा एसिड अटैक सर्वाइवर्स को उनकी सर्जरी करवाने में मदद की है। ‘ब्रेव सोल्स फाउंडेशन’ के जरिए एसिड अटैक सर्वाइवर को सभी प्रकार की मदद दी जाती है। उनकी पढ़ाई के साथ ही उनका इलाज भी किया जाता है। हमारा शेल्टर होम है, जिसमें एसिड अटैक सर्वाइवर्स रहती हैं। यहां अलग- अलग राज्यों यूपी, बिहार, छत्तीसगढ़, मुंबई और पश्चिम बंगाल की लड़कियां यहां आ चुकी हैं। हम सिर्फ उनका इलाज ही नहीं बल्कि उनकी कानूनी लड़ाई भी लड़ते हैं। साथ ही, हम उन्हें साइकोलॉजिकल थेरेपी भी देते हैं। अब तक हमने अपने NGO की तरफ से कई लड़कियों की मदद की हैं। हमारा ये काम अब भी जारी है।
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