2 घंटे पहले
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घुंघरू उसके पांव में भी छनक रहे थे और उसकी हंसी में भी छनछना रहे थे। दोनों ही एक लय में झनक रहे थे। कैसी अद्भुत झंकार पैदा कर रही थी वह अपने नृत्य से। सुर, ताल, गति, भंगिमा…हर भाव में एक रिद्म था। बेहतरीन संयोजन और अभिव्यक्ति…!
उसने चारों ओर नजरें घुमाकर देखा। हॉल में बैठे दर्शक मंत्रमुग्ध थे और उनके पांव भी उसकी हर थाप के साथ थिरक रहे थे।
वह तो यूं ही चला आया था इस कार्यक्रम को देखने। नृत्य-संगीत के कार्यक्रमों में उसकी कोई खास रुचि नहीं है। नाटक देखने चला जाता है। फिल्में भी खूब देखता है और आर्ट ऐग्जीबिशन तो एक भी नहीं छोड़ता। अपने आपको आर्टिस्ट तो नहीं मानता, लेकिन पेंटिंग बनाता है, लेकिन ज्यादातर लैंडस्केप। पोर्ट्रेट बनाने की बहुत इच्छा है उसकी। कला प्रेमी है, इसलिए रंगों और उससे जुड़ी भावाव्यक्ति से परिचित है।
रंजन उसे जबरदस्ती ले आया था यह कहकर कि ‘मेरी गर्लफ्रेंड को अपने पेरेंट्स के साथ कहीं जाना पड़ा। अब तुझे ले जाने के सिवाय मेरे पास और कोई ऑप्शन नहीं है। वरना फ्री के पास बर्बाद हो जाएंगे और ऐसा मैं होने नहीं दूंगा। यार, टिकट खरीदकर तो हम देखने से रहे ऐसे प्रोग्राम। तू बेशक सो जाना वहां जाकर, लेकिन मुझे कंपनी दे दे। तू जानता है कि मुझे कितना पसंद है लड़कियों को थिरकते देखना है।’
परख को उसकी बात माननी पड़ी थी। पर नृत्य देख नींद तो क्या आती, होश जरूर उड़ गए उसके। नृत्यांगना के सांवले चेहरे पर टिकीं काली आंखें और उनमें गहरी काजल की लकीर…पैरों की उंगलियां व तलवों में लाल रंग, हथेली के बीचो-बीच भी लाल रंग का गोला, जूड़ा फूलों के अर्धवृत्त से सजाया गया था और माथे पर टीका लगा था। चूड़ियां, झुमके, हार और कलाईबंद… परख उसको बारीकी से निहार रहा था। फिल्मों में या टीवी पर नृत्य देखा है, पर इतने ध्यान से कभी इन बातों पर गौर नहीं किया था उसने। फिर इसकी हर चीज पर इतना गौर क्यों कर रहा है!
स्टेज परफॉर्मेंस में मेकअप तो अनिवार्य होता है, पर परख तो कुछ और ही सोच रहा था। यह बिना मेकअप के कितनी मासूम और सुंदर लगती होगी। निश्चल सौंदर्य उसने पेंटिंग्स में देखा है पूरे भावों के साथ और यह तो जीती जागती पेंटिंग लग रही थी जो बस थिरक रही थी। मानो उसकी पैरों में बिजली की गति समाहित हो गई हो।
परख को पता ही नहीं चला कि कब उसके पैर थाप देने लगे थे और भावविभोर होकर वह ताली बजाते हुए गुनगुनाने लगा था।‘ चुपचाप बैठ कर देख डांस। यह डांसर तो गजब है। आज का प्रोग्राम मिस करता तो सचमुच ऐसे बेहतरीन नृत्य को नहीं देख पाता। कितनी चपल, चंचल सी है यह,’रंजन ने सीटी निकालने के अंदाज में होंठ गोल किए। उसकी आंखों में उतरी चमक उस नृत्यांगना की लचकती देह को देख उभरी थी। उस चमक में कामुकता थी।
परख को कतई अच्छा नहीं लगा रंजन का यूं बोलना। रंजन नृत्यांगना की काया पर लट्टू हो रहा था, उसके दैवीय नृत्य पर नहीं। परख को क्यों बुरा लग रहा है? जबकि उसे तो समझ तक नहीं है नृत्य की। यहां तक कि यह भी नहीं बता सकता कि वह किस शैली में नृत्य कर रही है। लेकिन कला प्रेमी है तो जानता है कला के वास्तविक सौंदर्य को।
वहां लगे बैनर पढ़ने लगा जिसमें नृत्य का वर्णन किया गया था— ‘भरतनाट्यम नृत्यांगना नूपुर जोशी का कलाक्षेत्र शैली में नृत्य। यह भरतनाट्यम की एक आधुनिक एवं प्रसिद्ध शैली है जो नृत्य प्रदर्शन में भावना और नृत्य रूप के गीतात्मक क्षेत्रों पर जोर देती है।’
परख को कुछ ज्यादा तो समझ नहीं आया, लेकिन वह पूरी तरह से खो गया था। उसकी तंद्रा तब भंग हुई जब तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल भर गया। नूपुर सबका अभिवादन कर रही थी।
प्रस्तुति खत्म होते ही सब उठकर जाने लगे।
‘चल, पहले तो आना नहीं चाहता था और अब कुर्सी से उठ नहीं रहा,’ परख को बैठे देख रंजन उसका हाथ खींचते हुए बोला।
‘अद्भुत प्रस्तुति थी!’ परख बोला।
‘नृत्य का तो पता नहीं। मुझे तो यह डांसर अद्भुत लगी,’ रंजन ने आंख मारते हुए कहा।
‘सम्मान करना सीख कला का,’ परख गुस्से से बोला।
‘क्यों किसी की तारीफ करना कोई अपराध है? मुझे तो माल लगी है डांसर। मेरी गर्लफ्रेंड तो इसके सामने कुछ भी नहीं। क्या कहता है इससे मिल लिया जाए? तू जानता है मैं लड़कियों को पटाने में कितना एक्सपर्ट हूं।’ रंजन ने हॉल से बाहर निकलते हुए कहा तो परख भड़क गया।
‘सोच समझकर बोला कर। किसी स्त्री का का सम्मान नहीं कर सकता तो उसका अपमान भी मत कर। चाहे कितनी गर्लफ्रेंड बना ले या लड़कियां पटा, मुझे क्या। लेकिन तेरी यह सोच मुझे पसंद नहीं। लगता है तू हमारी दोस्ती तोड़ कर ही रहेगा।’
‘ओह! तू तो बेवजह भावुक हो रहा है। लगता है कुछ ज्यादा ही भा गई है नूपुर जोशी तुझे?’
परख बोला कुछ नहीं, बस उसे घूर कर देखा। हॉल से बाहर निकलते हुए रिसेप्शन पर रखे पैम्फ्लेट को उसने उठा लिया। नूपुर और कहां-कहां परफॉर्म करने वाली है, उसके बारे में भी उसमें लिखा था। उसकी नृत्य करती फोटो उस पर लगी थी।
नूपुर का पोर्ट्रेट बनाएगा और अगर संभव हुआ तो खुद जाकर उसे भेंट करेगा, उसने सोचा और पैम्फ्लेट को संभाल कर जेब में रख लिया।
बहुत दिनों तक नूपर उसके मन-मस्तिष्क पर छाई रही। वह उसे अपने दिलो-दिमाग में उतारता रहा ताकि जब वह उसका पोर्ट्रेट बनाए तो उसकी छवि हूबहू उतर कर आ जाए।
वास्तव में वह उसके दिमाग से हौले-हौले कदम रखते हुए, उसके दिल पर टहलकदमी करने लगी थी। यूट्यूब पर वह रोज ही उसके वीडियो देखता। वह हैरान था इस बात से कोई अनजाना कैसे आपके मन में जगह बना लेता है। बिना किसी जान-पहचान के नूपुर उसकी जिंदगी में सर्दियों की गुनगुनी धूप और गर्मियों की शीतल चांदनी की तरह अपने घुंघरुओं की झनक के साथ प्रवेश कर चुकी थी।
नुपूर का स्केच तैयार हो चुका था। परख अब रंग भर रहा था। उसकी कूची शायद अपने आप ही अब उसमें रंग भर देती थी, जैसे जानती हो कि परख उसे किस तरह ढालना चाहता है। उस दिन नृत्य करती नूपुर कैनवास पर धीरे-धीरे रंगों के छुअन के साथ झनकने लगी थी।
दो महीने बाद वह परख के कैनवास पर ऐसे मुस्करा रही थी मानो उससे कह रही हो कि एक बार देखकर ही मुझे तुमने इस तरह से साकार कर दिया है।
व्हाट्सअप पर एक आर्ट एग्जीबिशन का इंवाइट मिला—‘त्रिवेणी सभागार में आगामी रविवार को होने वाली आर्ट एग्जीबिशन का उद्घाटन करेंगी उभरती हुईं नत्यांगना नूपुर जोशी। इसमें आठ कलाकारों के चित्र लगाए जाएंगे।’
परख को लगा जैसे यह पोर्टेट भेंट करने का सही मौका है। लेकिन वह कहेगा क्या? और उससे बिना पूछे उसका चित्र बनाने पर अगर नूपुर नाराज हो गई तो? लेकिन वह तो पब्लिक फीगर है, उसका चित्र तो कोई भी बना सकता है, उसने अपने मन को समझाया।
नूपुर अवाक खड़ी कभी अपने पोर्टेट को देख रही थी तो कभी परख को।
‘मैं सोच भी नहीं सकती कि बिना सामने बैठाए कोई इतना सुंदर चित्र बना सकता है। अद्भुत रंग संयोजन है और मेरे नृत्य की भंगिमाओं का बेहतरीन ढंग से चित्रण किया है। कैसे बना पाए आप ऐसा चित्र?’ त्रिवेणी सभागार की कैंटीन में कॉफी पीते हुए नूपुर ने पूछा।
‘पता नहीं। लेकिन अगर किसी की छवि दिल में उतर जाए और मन पर सुरमई शाम की तरह दस्तक देने लगे तो शायद कैनवास पर उसकी तस्वीर बनाना मुश्किल नहीं होता,’ परख न जाने कैसे बोल गया यह सब।
नूपुर खामोशी से उसे बस एकटक देखती रही।
-सुमना. बी
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