The breaking wall of salary gap | सैलरी गैप की टूट रही दीवार: आईटी में महिलाएं पुरुषों पर भारी, हर महिला है खास, जरूरत खुद को पहचानने की

नई दिल्ली6 घंटे पहलेलेखक: ऐश्वर्या शर्मा

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पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक रील वायरल हुई। इस रील में सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर जैसमीन कौर ने लेडीज सूट बेचते हुए कहा- So beautiful, so elegant, just looking like a wow”। यह लाइन भले ही सलवार-सूट के लिए कही गईं और हर किसी के मुंह पर चढ़ गई लेकिन यह शब्द हर महिला की पर्सनैलिटी में ढूंढ़ने पर मिल सकता है।

हर स्त्री में WOW फैक्टर है, बस जरूरत है उसे पहचानने की और थोड़े जोश और हिम्मत के साथ अपने WOW फैक्टर को दुनिया के सामने लाने की।

महिला गोरी हो या सांवली, स्लिम हो या ओवरवेट, हाइट छोटी हो या लंबी, हाउसवाइफ हो या वर्किंग, कुंवारी हो या शादीशुदा, यंग हो या उम्रदराज… हर महिला आपने अंदर उम्र के मुताबिक वाओ फैक्टर छुपाए रखती है। जिसे बाहर लाने का मौका उसके घर, परिवार और समाज को देना होता है। इनके प्रोत्साहन के बिना वो वाओ फैक्टर कभी बाहर नहीं आता, की लोगों को नजर नहीं है तो कभी पूरा खिलकर नजर नहीं आता। वह पापा की परी भी है और अपने किंग की क्वीन भी। उसकी हर बात, आदत और अदा में WOW है क्योंकि वह है Women Of Wisdom (बुद्धिमान महिला)।

दुनिया पहचान रही Woman Of Worth (WOW)

स्त्री का वाओ फैक्टर बाजार ने बहुत पहले से पहचानना शुरू कर दिया था इसलिए हर विज्ञापन में महिला की मौजूदगी दिखती है। यहीं नहीं मार्केट में बिक रही अधिकतर चीजें महिलाओं की जरूरतों से जुड़ी हैं और जो मार्केट मर्दों को पहचानता रहा है, उसने भी औरत को आगे आने के लिए बढ़ावा दिया है। चाहे वह कार हो, गैजेट्स हों या फिर कॉफी का मग।

फैशन वियर, फुटवेयर, ब्यूटी प्रोडक्ट्स या किचन ग्रोसरी हो, हर विज्ञापन में महिलाएं ही नजर आएंगी। कंपनियां जानती हैं कि ‘ललिता जी’ अब सिर्फ कपड़े ही नहीं धोतीं, उनकी अंगुलियां लैपटॉप का की-बोर्ड हो या मोबाइल बैकिंग, सभी कामों को स्मार्टली कर ले जाती हैं। उसने अपनी तरक्की खुद की है। वो अब होम मेकर ही नहीं होम मैनेजर है और घर के दो अहम ओहदे संभालती है। वह घर की प्राइम मिनिस्टर भी है और फाइनेंस मिनिस्टर भी। यही इस होममेकर को Woman Of Worth (WOW) बनाती है।

कॉर्पोरेट में महिलाओं का दबदबा

पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं ने अपना अलग वजूद बनाया है। बार-बार पीछे धकेले जाने के बावजूद भी वह वर्कप्लेस पर पुरुषों को चैलेंज करती हैं। आईटी सेक्टर में 30% महिलाएं काम कर रही हैं। कोडिंग निंजा नाम की टेक कंपनी के अनुसार टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले 7% ज्यादा कमा रही हैं। वहीं, नर्सिंग, टीचिंग, सोशल वर्क जैसी फील्ड में महिलाओं का ही दबदबा है।

सैलरी गैप की दीवार भी टूट रही

‘इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन’ के अनुसार दुनिया में जहां 72% पुरुष जॉब कर रहे हैं, वहीं महिलाएं 47% ही नौकरीपेशा हैं। हालांकि उनकी सैलरी पुरुषों के मुकाबले आधी भी नहीं है।

भारत में महिला कर्मचारी पुरुष कर्मचारियों के मुकाबले 35% तक कम सैलरी पा रही हैं। यह सैलरी गैप हर क्षेत्र में है जो महिला को Worst of worst (WOW) स्थिति में खड़ा कर देता है।

हालांकि, टेक महिंद्रा, डॉबर, अडोब इंडिया, एमफेसिस जैसी कुछ प्राइवेट कंपनियों ने जेंडर सैलरी गैप की दीवार को तोड़ा और महिलाओं को पुरुषों के समान वेतन देना शुरू किया। सिर्फ सरकारी नौकरियों ही हैं, जहां महिलाओं और पुरुषों को समान वेतन मिलता है।

शादीशुदा महिलाओं को कमतर आंकता कंपनी मैनेजमेंट

एचआर प्रोफेशनल स्मिता ओमर कहती हैं कि शादीशुदा महिलाओं को डबल-ट्रिपल ड्यूटी करनी पड़ती हैं। उन्हें घर, बच्चा और करियर, सब संभालना होता है। जॉब देते समय कंपनियां इन मुद्दों पर बात करती हैं जो महिलाओं की सैलरी डिमांड की पावर कमजोर बनाती है।

महिलाओं के लिए मदरहुड भी सजा है। ये सवाल फादरहुड पर क्यों नहीं उठते? कंपनियों को फीमेल वर्कर को कानूनी तौर पर मैटरनिटी लीव देनी पड़ती है। इसलिए पेनल्टी के तौर पर उन्हें पहले ही कम सैलरी ऑफर की जाती है। लेकिन अब तो पुरुष भी पैटरनिटी लीव के हकदार हो चुके हैं फिर ये भेदभाव क्यों?

प्रेग्नेंसी, पीरियड, मेनोपॉज…ये सभी वो प्राकृतिक प्रक्रिया है जो महिला को कुदरत की देन है। जो उसे औरत होने पर मां बनने का हक देती है। फिर इन बातों को उसकी काबिलियत और परफॉर्मेंस से क्यों जोड़ा जाता है?

पीरियड लीव्स Wall Of Worry (WOW) का नमूना

औरत से जुड़ी हर चीज बहस का विषय है। एक सच्ची सुलझी सोच के साथ उसके हल नहीं ढूंढे जाते। ‘अनमैरिड’ है तो शादी कर लेगी और प्रोजेक्ट लटक जाएगा, शादीशुदा है तो कभी भी ‘प्रेग्नेंट’ हो सकती है। इसलिए हर करियर में यह सवाल उठते हैं। मॉडलिंग और एक्टिंग वर्ल्ड में पहले ही ‘नो प्रेग्नेंसी बॉन्ड’ भरवा लिया जाता है और उम्र होने पर काम से दरकिनार करना शुरू कर देते हैं।

कभी ये तमाम सवाल मर्द से क्यों नहीं होते?

पीरियड्स लीव पर भी खूब हल्ला हुआ। भारत में बिहार पहला ऐसा राज्य बना, जहां मेंस्ट्रुअल लीव दी गई। यकीनन महिलाओं के लिए पीरियड्स दर्द भरे दिन होते हैं लेकिन इस पर उछल-उछल कर अपने शरीर के नेचुरल प्रोसेस को दुनिया के सामने रोना, कहां की समझदारी है?

पीरियड्स हर महिला के लिए सौगात है जो उसे पुरुषों से बेहतर, ओहदे वाला और हिम्मती बनाती है।

प्रकृति के दिए इस तोहफे से महिलाएं मां बनीं और राजनीति, इतिहास और सियासत को बदला।

बेहतर है कि महिलाएं अपने शरीर को लेकर उड़ते मजाक में शामिल होना बंद करें और अपने WOW फैक्टर की गरिमा को बरकरार रखें।

500 रिजेक्शन झेल बनी सफल बिजनेसवुमन

बिजनेसवुमन शयान्तनी मंडल मशहूर टीवी शो ‘शार्क टैंक’ के जरिए मशहूर हुईं। वह “वॉट्स अप ब्यूटी” की को-फाउंडर हैं। वह कहती हैं कि हर महिला की जिंदगी में If और but यानी ‘अगर-मगर’ बहुत होते हैं, वह भले ही किसी भी बैकग्राउंड से हो। कई बार उन्हें चुपचाप बैठने को बैठा दिया जाता है।

जब मैंने बिजनेस शुरू किया तो 500 से ज्यादा इनवेस्टर्स ने मुझे और मेरे प्रोपोजल को रिजेक्ट किया। मैंने आईआईएम, आईआईटी जैसे संस्थानों से पढ़ाई नहीं की है और न ही मैं एमबीए हूं, ऐसे में लोगों को लगा कि मैं बिजनेस समझती नहीं हूं और मैं बिजनेस कर नहीं पाऊंगी। लेकिन मैंने खुद को अपने बलबूते पर साबित किया।

औरत के अकेलेपन पर ना जाएं, वो बेचारी नहीं

ये मर्दों की दुनिया है। मर्द का नाम औरत के नाम के साथ जुड़ जाए तो समझा जाता है कि वह अकेली नहीं और इज्जतदार है। लेकिन कई बार वह स्त्री जितनी उस पुरुष के साथ रहकर अकेली होती है, उतनी वह अकेली रहकर भी अकेली नहीं होती। कभी सोचकर देखा है?

दिल्ली में रहने वालीं स्मिता भारती ने शादी की कैद में जिंदगी के 12 साल गुजारे और रोज घरेलू हिंसा झेली।

उनके नाम के साथ जुड़ा मर्द का नाम किसी काम नहीं आया।

आज वह मशहूर प्ले राइटर और सोशल एक्टिविस्ट हैं। वह कहती हैं कि अकेली औरत को ‘बेचारी’ वाला टैग देना गलत है। वह बस इस समाज से इज्जत चाहती है। उसे आगे बढ़ने का मौका दीजिए लेकिन उसे ये मौका देता कौन है? उनका कहना है कि “मुझे जो बातें 35 साल की उम्र में जाकर समझ आई, वो अगर मैं 19 साल की उम्र में समझ लेती तो मेरे लिए फैसले लेना बहुत आसान होता। मैं रिएक्ट कम करती, एक्शन ज्यादा लेती। मेरा अपनी जिंदगी पर कंट्रोल और मजबूत होता।

सही नजर से देखा जाए तो स्त्री में कदम-कदम पर WOW फैक्टर मौजूद है। सिंगल होना भी वाओ है, मिंगल करना भी। होममेकर होना भी वाओ है, वर्किंग होना भी वाओ। स्त्री की सोच और पर्सनैलिटी में वजन है इसलिए वह पूरे तौर पर WOW (Women on weight) है। स्त्री के बिना दुनिया की कल्पना नामुमकिन है इसलिए चाहे चुटकी लेने के लिए कुछ भी कहिए लेकिन हकीकत यही है कि जमाना है स्त्रियों का इसलिए अंग्रेजी में कहा गया WOW जिसका मतलब है- World Of Women…

औरत की इस दुनिया को पॉजिटिव नजर से देखते रहिए, वह बहुत कुछ कर चुकी है और बहुत कुछ करके दिखा भी रही है।

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