Tell daughters about periods | पीरियड्स के बारे में बेटियों को बताएं: 81% लड़कियां पहली बार माहवारी नहीं समझतीं; 7 साल की उम्र से जानकारी देना शुरू करें

नई दिल्ली6 दिन पहलेलेखक: ऐश्वर्या शर्मा

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पीरियड्स की शुरुआत हर लड़की के लिए एक खुशखबरी है क्योंकि यह उनके हेल्दी होने की निशानी है। पीरियड्स ही हर लड़की को भविष्य में मां बनने की खुशी देते हैं।

अगर माहवारी सही ढंग से ना हों तो मां बनना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाता है। इस मासिक चक्र को समझना और समझाना सेक्स एजुकेशन का ही हिस्सा है, जिसकी शुरुआत घर से ही होनी चाहिए।

पीरियड्स आने का मतलब है कि बच्ची अब युवावस्था में कदम रख रही है।

बेटी को पीरियड्स के बारे में बताना हर पेरेंट्स के लिए जरूरी है ताकि वह इन दिनों का मजबूती से सामना करे और अपनी बॉडी को समझे।

लेकिन घरों में इस बारे में खुलकर बात नहीं की जाती जिस वजह से कई टीनएज लड़कियां गलतफमियों और परेशानी से घिरी रहती हैं।

पीरियड्स युवा होती बच्ची के लिए एक सामान्य प्रक्रिया है और इसमें कोई शर्म की बात नहीं। मां का यह बात बेटी को समझाना बेटी पालने का ही एक हिस्सा है।

लेकिन मां कैसे बेटी को इसके बारे में कैसे बताए और समझाए कई पेरेंट्स संकोच का विषय बन जाता है जो कि गलत है।

स्टेफ्री सैनिटरी पैड ने एक सर्वे में पाया कि 81% लड़कियों को जब पहली बार पीरियड्स आए तो उन्हें इसका पता ही नहीं होता कि ये क्या हो रहा है और उनके शरीर में किस तरह के बदलाव आ रहे हैं?

वह अपने शरीर के बदलावों को लेकर चौंकती हैं, साथ ही घबराती भी हैं क्योंकि इस विषय पर उनको पहले से कोई जानकारी नहीं होती।

बच्ची को 7 साल की उम्र के बाद पीरियड्स के बारे में बताना शुरू करें

दिल्ली के सीके बिरला हॉस्पिटल में गायनोकॉलोजिस्ट डॉ. प्रियंका सुहाग कहती हैं कि आजकल बच्चियों को पीरियड्स जल्दी शुरू हो जाते हैं इसलिए उन्हें 7 साल की उम्र में ही इसके बारे में समझाना शुरू कर देना चाहिए।

पेरेंट्स को ना केवल पीरियड्स बल्कि पीरियड्स से जुड़ी हाइजीन के बारे में भी जागरूक करना चाहिए।

दरअसल, उम्र के इस दौर में बच्चियां भावनात्मक रूप से कमजोर होती हैं। वह पीरियड्स के लिए मेंटली तैयार नहीं होंती। वह खुद के शरीर में हो रहे बदलावों को समझ नहीं पातीं और मूड स्विंग का शिकार होती हैं।

इसलिए हर मां को अपनी बेटी को इस उम्र में आने वाले बदलावों के बारे में समय समय पर बताना चाहिए ताकि बच्ची अचानक पीरियड्स के शुरू होने पर सहम न जाए।

अपने शरीर को समझना हर लड़की का हक

पेरेंटिंग एक्सपर्ट डॉ. गीतांजलि शर्मा कहती हैं कि आजकल बच्चे विज्ञापनों, फिल्मों और सोशल मीडिया को देखकर पहले से ही पीरियड्स के बारे में जान लेते हैं।

पीरियड्स को लेकर उनके मन में कई सवाल होते हैं। उनके हर सवाल का जवाब देना पेरेंट्स के लिए जरूरी है ताकि बच्चे इस प्रक्रिया को समझ सकें।

मां को बच्ची से इस बारे में खुलकर बात करनी चाहिए। मां बायोलॉजी की किताब या फीमेल बॉडी चार्ट के जरिए बेटी को बता सकती है कि पीरियड्स क्यों होते हैं और वह उनके शरीर के लिए कितने जरूरी हैं।

मां बोलचाल की भाषा में बेटी को बताए कि बच्ची के बड़े होने के सफर का यह अहम हिस्सा है। इसी समय मां बच्ची को बताए कि माहवारी क्यों और कैसे होती है, और स्त्री शरीर के लिए कितना जरूरी है?

भविष्य में इससे ही गर्भ ठहरता है और इस उम्र में पहुंचकर बच्ची को किन बातों को लेकर सावधानियां बरतनी हैं। मां बेटी को ये भी बताए कि उससे बढ़कर बेटी की सहेली नहीं हो सकती।

ये बात मां-बेटी के रिश्ते को मजबूत बनती है, साथ ही आपसी रिश्ते में विश्वास बढ़ाती है।

मां दे अपना उदाहरण

अगर मां चाहती है कि बेटी उनसे खुलकर अपने दिल की बात बताए तो इसके लिए बेटी के साथ समय बिताना जरूरी है। जब मां बेटी के साथ रहती है तो वह सहज हो जाती है और मां को दोस्त मानने लगती है।

हर मां को अपनी बेटी के सामने अपना उदाहरण देना चाहिए। मां को बताना चाहिए कि जब उन्हें पीरियड्स शुरू हुए तो उन्हें कैसे महसूस हुआ और उन्होंने कैसा महसूस किया। जब मां अपना उदाहरण देकर बात करती है तो बच्ची की झिझक मिटती है और खुलकर सवाल पूछ सकती है।

बेटी पर ध्यान दें मां

हर मां को बेटी के शरीर में आए बदलावों पर गौर जरूर करना चाहिए।

जब बेटी चिड़चिड़ी होने लगे, बात-बात पर उसे गुस्सा आए या जब वो रो पड़े या लंबे समय तक सोती रहे तो मां को समझ जाना चाहिए कि बेटी प्यूबर्टी के दौर से गुजर रही है। अगर बेटी की पेंटी में वाइट या रंगहीन डिस्चार्ज देखने को मिले तो यह मेंस्टुअल साइकिल के जल्दी शुरू होने की निशानी है।

पहला पीरियड इस तरह के वजाइनल डिस्चार्ज के निकलने के 3 से 12 महीनों के अंदर शुरू हो सकता है।

सैनिटरी पैड का इस्तेमाल और हाइजीन बताएं

सैनिटरी पैड कैसे इस्तेमाल होता है, मां को बेटी के साथ बैठकर इसका डेमो करना चाहिए। यहीं नहीं टैंपून या मेंस्ट्रुअल कप के बारे में भी जागरूक करना चाहिए।

उन्हें बताना चाहिए कि इन्हें हर 4 से 6 घंटे में बदलना चाहिए और उन्हें डस्टबिन में ही फेंकना चाहिए।

अगर इन्हें समय रहते ना बदला जाए तो इंफेक्शन हो सकता है। बेहतर है कि जब बेटी प्यूबर्टी में आए तो उनके स्कूल बैग में पहले से ही सैनिटरी पैड और एक्स्ट्रा अंडर गार्मेंट रखें।

मेंस्ट्रुअल साइकिल को नोटिस करना बताएं

एक नॉर्मल मेंस्ट्रुअल साइकिल 28 से 35 दिन की होती है। बेटी को पीरियड्स के पहले दिन से लेकर दूसरे पीरियड्स के पहले दिन के गैप का कैलकुलेशन बताएं। हर लड़की को अपने पीरियड्स का कैलेंडर मॉनिटर करते रहना चाहिए। यह कैलेंडर उनके पीरियड्स के नॉर्मल या एब्नॉर्मल होना बताता है।

बेटी को बताएं कि पीरियड्स के शुरुआती कुछ सालों में ब्लड का रंग हल्का या गहरा लाल या काला हो सकता है और इसकी तारीख कुछ दिन ऊपर नीचे हो सकती है। पीरियड्स 5 से 7 दिन तक आ सकते हैं।

मां ही नहीं पापा को भी बेटी का बनना चाहिए गाइड

अब जमाना बदल रहा है। पहले घरों में बेटी पिता से अपने शरीर को लेकर कोई बात नहीं कर सकती थी लेकिन अब समाज में खुलापन आया है।

अगर बेटी पिता के करीब है तो मां को पिता के साथ बैठकर बेटी को पीरियड्स के बारे में जागरूक करना चाहिए ताकि अगर मां घर पर ना भी हो तो बेटी पापा से बेझिझक सैनिटरी पैड्स मंगवा सके।

हर पेरेंट्स और बच्चे को यह समझना जरूरी है कि पीरियड्स कोई बीमारी नहीं है। जैसे शरीर के बाकी अंग है, पीरियड्स भी इसी का हिस्सा है और इसमें छुपाने वाली चीज कुछ भी नहीं है।

घर में ऐसा माहौल होना जरूरी है कि बेटी हर तकलीफ मां के अलावा पिता से भी शेयर कर सके।

पीरियड पैंटीज अच्छा विकल्प

पीरियड पैंटीज सामान्य अंडरवियर की तरह ही होती हैं। यह सैनिटरी पैड्स के अलावा पीरियड्स के लिए अच्छा विकल्प है। यह पैंटी री-यूजेबल हैं। इन पैंटीज में माइक्रोफाइबर पॉलिस्टर नाम का मटीरियल इस्तेमाल किया जाता है जो पीरियड्स का ब्लड सोखता है।

गीलापन सोखने की वजह से पैंटी ड्राई रहती है और चूंकि इन पैंटीज में 3 लेयर होती हैं तो इसमें लीकेज की चिंता भी नहीं सताती। यह पैंटीज 4 से 6 घंटे तक पहनी जा सकती हैं।

लड़कियों को जाने-अनजाने में सैनिटरी पैड्स के खिसकने और कपड़ों पर दाग लगने का डर सताता है, लेकिन पीरियड्स पैंटी इस टेंशन को भी दूर करती है।

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