नई दिल्ली2 घंटे पहले
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प्रणाम!
छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार जिले की रहने वाली मैं किरण वर्मा लाइफ कोच हूं, लोगों को जीना सिखाती हूं। तनाव और अवसाद में गहरे डूबे लोगों को बाहर निकालती हूं।
मैं बचपन से ही टीचर बनना चाहती थी। क्लासरूम में बच्चों को पढ़ाने, उनका भविष्य संजोने के सपने देखती। स्कूल की टीचर तो नहीं बन पाई लेकिन आर्ट ऑफ लिविंग की टीचर जरूर बनी।
15 वर्षों से ग्लूकोमा से पीड़ित, मेडिटेशन से कंट्रोल किया
मैं माइग्रेन से पीड़ित रही हूं। मुझे सिर में भयानक दर्द होता। सिर के एक हिस्से से जोर का दर्द उठता और दूसरे हिस्से तक जाता। घंटों सिर दर्द बना रहता। इसके कारण उल्टी होती।
अंधेरे से प्रकाश में जाती तो मेरा सिर फटने लगता। दरवाजे की कुंडी भी कोई खोलता तो उस आवाज से मेरा सिर दुखने लगता। ठीक से बोल न पाती।
कानों में लगता कि घंटियां बज रही हैं। आंखों की रोशनी भी ऐसी हो गई जैसे कोई अंधेरी सुरंग में से बाहर देख रहा हो जिसे ‘टनल विजन’ कहते हैं। जब डॉक्टर को दिखाया तो पता चला कि मुझे ‘ग्लूकोमा’ यानी ‘काला मोतिया’ है।
ग्लूकोमा कभी ठीक नहीं होता। डॉक्टर ने कह दिया कि आपकी आंखों की रोशनी कभी भी जा सकती है। जब अंधेरे से प्रकाश में जाएंगी या तेज प्रकाश से अंधेरे में जाएंगी या किसी तरह का बड़ा तनाव लिया तो आपकी आंखों की रोशनी छिन जाएगी।
सुदर्शन क्रिया और मेडिटेशन से ग्लूकोमा को कंट्रोल किया
मैंने सुदर्शन क्रिया और मेडिटेशन करना शुरू किया। सुदर्शन क्रिया जिसमें सांसों पर नियंत्रण किया जाता है। नियमित रूप से मैं इसका अभ्यास करने लगी।
भस्त्रिका प्राणायाम करती जो कि डीप ब्रीदिंग है। सुदर्शन क्रिया और मेडिटेशन के प्रभाव से मेरा स्ट्रेस दूर हुआ। नींद अच्छी आने लगी। मन शांत रहने लगा। जिस माइग्रेन से मैं बेचैन रहती थी वह छू मंतर हो गया।
जब मैं दोबारा डॉक्टर के पास गई तो उन्होंने जांच में पाया कि नर्व टेंशन बिल्कुल नहीं है। वो आश्चर्यचकित होकर पूछे कि आप क्या करती हैं?
मैंने बताया कि रोज सुदर्शन क्रिया और मेडिटेशन करती हूं।
डॉक्टर ने केवल एक दवा दी जिसे हर दिन लेना है। साथ ही सलाह दी कि कभी मेडिटेशन नहीं छोड़ना है। आज ग्लूकोमा हुए 15 साल हो गए लेकिन आंखों की रोशनी बिल्कुल सामान्य है। माइग्रेन तो पास भी नहीं फटकता।
आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर से आशीर्वाद लेतीं किरण।
गांव कस्बों में मेडिटेशन कराती हूं
2012 में आर्ट ऑफ लिविंग से जुड़ी। सुदर्शन क्रिया और मेडिटेशन ने मेरे जीवन को बदल दिया। मैंने तभी तय कर लिया कि जब मेरा जीवन बदल सकता है तो मैं दूसरों के स्ट्रेस को कम करने में मदद कर सकती हूं।
जिस सेंटर में मैं सुदर्शन क्रिया करती थी, वहीं आज टीचर के रूप में काम कर रही हूं।
आसपास के गांवों और कस्बों में जाती हूं और लोगों को ब्रीदिंग एक्सरसाइज के बारे में बताती हूं।
पहले सेशन में मैं पूछती हूं कि जन्म लेने के बाद सबसे पहले कौन सी क्रिया होती है। अधिकतर लोग रोने की बात करते हैं जबकि दुनिया में आने के बाद हम पहला काम सांस लेना ही करते हैं।
चूंकि हम उसके प्रति सजग नहीं रहते इसलिए सांस के बारे में लापरवाह हो जाते हैं।
सांस लेने से हमारा जीवन शुरू होता है। जब हम आखिरी बार सांस छोड़ते हैं तो जीवन का समापन हो जाता है। सांसों के द्वारा और सांसों की प्रक्रिया ही सुदर्शन क्रिया है।
गुरुदेव श्रीश्री रविशंकर ने सबसे पहले सुदर्शन क्रिया के बारे में बताया। जहां भी निगेटिविटी है, तनाव है सुदर्शन क्रिया द्वारा बाहर किया जाता है।
छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार में आर्ट ऑफ लिविंग सेंटर में कोर्स करने वालों के साथ किरण।
सेवा करती हूं, लोगों के जीवन में आया परिवर्तन ही मेरी सैलरी
मैं हर दिन लोगों को मेडिटेशन का कोर्स करवाती हूं। नौकरीपेशा या बिजनेसमैन के लिए सप्ताह में 3 दिन क्लास होती है जबकि गृहिणियों के लिए 6 दिन तक क्लास चलती है।
एक दिन साप्ताहिक फॉलोअप होता है जिसमें लोग बताते हैं कि सुदर्शन क्रिया करने के बाद उनके जीवन में क्या परिवर्तन आया। उनका मन हल्का होता है।
कुछ समय पहले एक महिला आई और बताया कि वो अपने पति को लेकर परेशान है। पति को सुसाइड के ख्याल आते। वह हमेशा कहता कि मैं मर जाऊंगा, कुछ कर लूंगा।
वो अपने पति को लेकर आई। दोनों ने सुदर्शन क्रिया और मेडिटेशन किया। दोनों का जीवन बदल गया।
अमेरिका में परिवार के लोगों के साथ समय बिताती किरण।
बच्चों की बेहतर परवरिश के लिए नौकरी नहीं की
मेरे मायके और ससुराल दोनों जगह परिवार के लोगों ने काफी सपोर्ट किया। हम चार बहन और एक भाई हैं। पिता टीचर रहे। वो मुझे बेटा कहते। जब 18 साल की हुई तो शादी हो गई।
शादी के बाद मैंने ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन किया। तब सास ससुर भी मोटिवेट करते। नौकरी के भी ऑफर थे, लेकिन मैंने बच्चों की परवरिश के लिए नौकरी नहीं की।
जेल में बंदियों को कराती योग और मेडिटेशन
बलौदा बाजार जिले में उपजेल है। यहां बंदियों को योग और मेडिटेशन कराती हूं। तीन कोर्स मैंने लगातार कराया है।
जेल में बंदियों के बीच मेडिटेशन कराते हुए पाया कि वो भी हमारे जैसे ही हैं।
सभी तनाव में रहते हैं। एक चारदीवारी में हैं। क्षणिक आवेश में कुछ कर गए। कई बंदी तो बेकसूर भी रहते हैं।
इन बंदियों के बीच 40 दिनों की सुदर्शन क्रिया का अभ्यास रेगुलर कराती हूं। उन्हें बताती हूं कि एक दिन गैप किए बिना मन में शुद्ध संकल्प लेकर सुदर्शन क्रिया करें।
एक बार में 40 बंदी मेडिटेशन और सुदर्शन क्रिया करते हैं।
पिछली दीवाली के 4 दिन पहले फोन आया कि मैडम जेल में आपने योग कराया था। हम चार लोग जेल से बाहर आ गए हैं। वर्षों से परेशान थे। लेकिन आपके कारण आज अपने परिवार के साथ हैं।
मैं कहती हूं कि जेल में बंद कैदी भी करुणा के पात्र हैं। जो गलत कर भी लिया है वो करुणा के पात्र हैं घृणा के नहीं।
बच्चों को पिकनिक पर भेजने से डरती थी, आज बेटी अमेरिका में रह रही
मैं अपने बच्चों की परवरिश को लेकर बहुत संजीदा रही। ओवर केयरिंग मदर रही हूं। बच्चों को पिकनिक पर भेजने से भी डरती कि कहीं कुछ हो न जाए। लेकिन जीवन के प्रति नजरिया बदलने से मेरी चिंताएं और डर खत्म हो गई।
मेरी बेटी डेंटिस्ट है, उसने एमबीए भी किया। आज वह अमेरिका के न्यूजर्सी में नौकरी कर रही है।
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