If you get hold of your brother, he will cut the throats of both of them. | भाई के हाथ लग जाएं, दोनों का गला काट देगा: घर से चली गई और मोबाइल पर कोर्ट मैरिज का सर्टिफिकेट भेजा

32 मिनट पहले

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राधा, तेजी से बर्तन धुल रही थी, दो बार उसके हाथों की जल्दबाजी के कारण बर्तन सिंक से नीचे गिर चुके थे।

महिमा से रहा नहीं गया “इतनी जल्दबाजी क्या मचा रही हो, कही जाना है क्या?”

“आज जरा जल्दी जाऊंगी घर, मेरी बिट्टो पहली बार मुन्ने को लेकर घर आ रही है” वो हुलस कर बोली।

“एक दो दिन रुकेगी न? यहां जरूर लेकर आना, उसे देखे दो बरस हो गए” महिमा ने उत्सुकता से कहा।

“आपसे मिलने तो जरूर आयेगी वो, फिर शाम को ही लौट जाएगी” बसंती ने कहा ।

“आज छुट्टी ले लेती, तेरा मन नहीं करता बिटिया और नाती के लिए कुछ स्पेशल बना कर रखने का”

“उसका फोन तो बस अभी थोड़ी देर पहले ही आया, अब ये साबुन लगे बर्तन कैसे छोड़ दूं। आज मैं साफ सफाई नहीं कर पाऊंगी। अब घर जाकर बहुत से काम करने हैं।”

राधा उसे ही पड़ोस की अमिता को भी, फोन पर सूचना देने को कहकर तेजी से चली गई। महिमा, राधा की हड़बड़ाहट समझ रही थी। मगर ये ममता, वात्सल्य प्रेम उस समय कहां चला गया था जब उसके कोर्ट मैरिज करने पर, वो खून की प्यासी बन बैठी थी।

उसने अमिता को फोन मिला कर जब बताया कि आज राधा काम पर नहीं आएगी पर जब कारण पता चला तो हैरान होकर बोली, “क्या कह रही हो ? पूरा परिवार उसके विवाह के बाद से खून का प्यासा बना बैठा था। आज सब भूल गई।”

“अच्छा हुआ किसी की जिंदगी हो या कहानी अंत में भला ही अच्छा लगता है” महिमा बोली।

“वैसे तूने तो उसकी मां को समय पर चेता ही दिया था मगर वो उसे गच्चा देकर भाग ही गई” अमिता खिलखियाई तो वो न जाने क्यों, इस हंसी में उसका साथ न दे सकी।

उस दिन जब वो, पहली बार महिमा के घर, अपनी मां के साथ आकर, कपड़ा हाथ में लेकर, हर एक सामान को कौतूहल और सावधानी से झाड़ने पोंछने लगी थी। तब उसने कहा था

“इसे स्कूल क्यों नहीं भेजती हो राधा?”

“इसका पढ़ने में मन नहीं लगता हैं। किताब देखते ही सर दर्द शुरू हो जाता है इसका”

“इधर आओ, क्या नाम है तुम्हारा?”

“बसंती” वो अपनी फ़्रॉक के एक छोर को, अपनी उंगली में लपेटते हुए बोली।

“घर में सब बिट्टो ही बोलते हैं। इसकी दादी ने बिट्टो बिट्टो कहना शुरू कर दिया था ” राधा ने कहा।

“तुम्हारा नाम बसंती क्यों रखा? पता हैं तुम्हें”

“हां मैं बसंत पंचमी को पैदा हुई थी न, अगर मैं लड़का होती तो मेरा नाम होता बसंत” अब वो खुलकर हंसने लगी।

“ चुपकर बहुत बोलती है। जल्दी जल्दी हाथ चला, ”

महिमा ने उसे पढ़ाने की बहुत कोशिश की तो वो किसी तरह अपना नाम लिखना पढ़ना सीख गई। पढ़ाई के अतिरिक्त वो हर काम में रुचि लेती। सिलाई में भी जल्द महारत हासिल कर ली। मेहंदी की एक से बढ़कर एक डिजाइन लगाने लगी।

सोलह वर्ष की उम्र तक पहुंचते वो काफी समझदार भी हो गई। आस पड़ोस से, साड़ी फाल पीको का काम भी करने लगी, साथ ही दो पैसे भी कमाने लगी। उसके पास आती तो अपनी पूरी दिनचर्या सुनाते हुए काम करती। अब राधा ने आना छोड़ दिया था अपनी जगह बसंती को ही भेजती।

एक दिन बसंती के सिर पर पट्टी बंधी देखकर उसने पूछा“ ये क्या हुआ तुझे”

“भाई ने मेरे सिर को, दीवार पर दे मारा”

“ क्यों?”

“मैंने अपनी बचत से नया मोबाइल खरीदा था। वो भी अस्पताल में वार्ड बॉय का काम करता है। मगर एक पैसा घर में नहीं देता। मेरा मोबाइल भी छीन लिया और मुझे मारा भी” बसंती ने कहा।

कुछ दिनों बाद राधा मिली तो वो उसने नई बात बताई, “दीदी आप दोनों घरों के अलावा, मैं इसे कहीं नहीं भेजती लेकिन इस मोबाइल ने इसे बर्बाद कर दिया है। न जाने किससे छुपकर बात करती है। उस दिन इतनी मार खाई फिर भी उसका नाम नहीं बताया”

“ मोबाइल में तो नंबर होगा?”

“उसमें तो नहीं मिला, अब इसके भाई ने फोन अपने पास ही रख लिया है”

पता नहीं कौन सच बोल रहा था कौन झूठ

अक्सर महिमा अपने फ्लैट आते जाते समय उसे से सीढ़ी पर बैठकर फोन पर बातें करते देखती। अपने घरवालों से छिपकर बात करने के लिए उसने नया फोन और जगह तलाश ली थी। फोन महिमा के घर में ही चार्ज करती लेकिन अपने घरवालों से न जाने कैसे और कहां छिपा कर रखती, समझ नहीं आता था। राधा या उसके बेटे को इस बात की खबर लगती तो वो जरूर मार खाती। मगर अब वो सावधान हो चुकी थी।

एक दिन महिमा ने उसे बैठाकर समझाया तो वो तुनक कर बोली, “वो मेरे साथ शादी करेगा बस मेरे अठ्ठारह साल का होने का इंतजार है”

“कौन है वो? क्या करता है ”

“ भाई का दोस्त है, लेकिन हमसे नीची बिरादरी का है। उसकी सिलाई की दुकान है मुझे वही से फाल पीको तुरपन का काम मिल जाता है। ये नया मोबाइल उसी पैसे का है”

“ तेरे भाई को नहीं पता जब तू उसकी दुकान पर जाती है?”

“नहीं वो हमारे घर पर ही कपड़े देकर जाता है और घर से ही लेकर जाता है। पैसे भी सबके सामने हिसाब करके दे जाता है। सबके सामने हम कोई बात नहीं करते, हम तो फोन पर बात कर लेते हैं”

“ पहले भी उसी के चक्कर में तेरा सिर फूटा था न?”

“नहीं तब तो मैं किसी से भी बात नहीं करती थी भाई ने झूठ बोल कर मेरा मोबाइल छीन लिया था”

कुछ दिन बाद बसंती काम पर नहीं आई उसकी जगह राधा आई तो महिमा ने सोचा कि इसे बसंती का सच बता देना चाहिए।

“आज बसंती क्यों नहीं आई? ” उसने बातचीत शुरू करने के लिहाज से पूछा।

“वो तो कल शाम से ही घर नहीं आई, भाग गई वो, अपने भाई के मोबाइल पर अपनी कोर्ट मैरिज का कागज डाला है उसने। अभी तो वो बसंती को, अपने गावं लेकर चला गया है। भाई के हाथ पड़ जाए एक बार, फिर देखना, दोनों का गला काट देगा। ” राधा क्रोध में गरजी।

“फिर खुद जेल चला जायेगा, तुम बुढ़ापे में अकेले बैठकर रोना” महिमा ने बात पूरी कर दी।

“सारी बिरादरी में नाक कट गई हमारी, हमसे नीची जात में मुंह काला करवा लिया उसने”

“तुम उसकी पहली गलती पर मार पीट न करके प्यार से समझाती तो वो तुम्हें धोखे में न रखती”

“ अब वो मरे जिये, हमें उससे कोई मतलब नहीं”

“एक गलती उसने की है तुम्हें धोखे में रखकर, अब दूसरी गलती तुम न करना, अपने दरवाजे उसके लिए बंद करके। बेटी है तुम्हारी, उसके सुख दुख में तुम्हें उसका साथ देना चाहिए”

मगर राधा, महिमा की किसी भी बात से सहमत न हुई।

आज दो साल बाद ही सही, अपनी बिटिया और उसके बच्चे से मिलने को उत्सुक राधा को देखकर उसे बहुत सुख मिला। बसंती और उसके नवजात के लिए उपहार खरीदने को महिमा भी उठकर बाजार जाने की तैयारी करने लगी।

-दीपा

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