I don’t know when and what will happen with Suhas, I want the drops of love to soak his life. | कुंभ वाला प्यार: सुहास के साथ कब, क्या घट जाए पता नहीं, चाहती हूं प्यार की बूंदें उसके जीवन को भिगो दें

2 घंटे पहले

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किसे पता था कि ऐसा कुछ भी हो सकता है। वैसे सुहास जैसा मनमौजी व्यक्ति है तो उसके साथ कब, क्या, और क्यों कुछ घट जाए यह अप्रत्याशित है। एक बड़े अखबार में फोटोग्राफर था, अच्छी साख थी और वेतन भी। छोड़ दी नौकरी कि ‘फ्रीलांसिंग करूंगा। उसमें जहां चाहे घूम सकता हूं और अपनी मनमर्जी की फोटो खींच सकता हूं। फ्रीलांसिंग से भी खूब पैसे कमा सकता हूं,’ उसका तर्क था।

उसकी बीवी कला एक प्रोफेसर है। बच्चा है नहीं, इसलिए जिंदगी आराम से चल रही है। दो साल ही हुए हैं उनके विवाह को। लेकिन क्या सच में आराम से चल रही है उनकी जिदगी? असल में पति-पत्नी की आपस में नहीं बनती, इसलिए दोनों बस खुश रहने का दिखावा करते हैं। दिखावा करना सबसे मुश्किल काम होता है, लेकिन वे न जाने कैसे कर लेते हैं!

“मैं कुंभ मेले में जा रहा हूं। चलिए मेरे साथ इस बार आप और दादा दोनों,” सुहास ने कहा।

“पर तुम तो एक बार पहले भी जा चुके हो?” मैंने पूछा। सुहास मेरा देवर है और अपने भाई-भाभी, यानी मुझे और विलास का बहुत मान करता है।

“हां बोदी गया तो था, तीन साल पहले। कुंभ मेला तीन साल बाद ही लगता है। पहले उज्जैन गया था। इस बार नासिक में है। कुंभ में जितनी भी फोटोग्राफी कर लो कम लगती है। वहां की हर चीज आकर्षित करती है मुझे और मेरे कमरे को भी,” उसने हंसते हुए कहा था।

“कला चलेगी क्या?” पता है वह नहीं जाएगी, फिर भी पूछ लिया था। “नहीं,” सुहास ने संक्षिप्त उत्तर दिया था। “वैसे बोदी जल्दी ही किसी झटके के लिए तैयार भी रहना,” इस बार सुहास ने जोरदार ठहाका लगाते हुए कहा।

कई बार सोचती हूं कि अपनी पीड़ा को छुपाने का शायद हंसी सबसे बेहतर तरीका है। खुद को भी तसल्ली दे देते हैं कि हम खुश हैं और दूसरे को भी लगता है कि अगला दुखी नहीं है।

“अब क्या झटका देने वाले हो तुम और कला?” विश्वास ने अपने छोटे भाई के गाल पर थपकी मारते हुए पूछा।

“दादा मैं नहीं कला देगी झटका। मैं तो सिर्फ उसके झटके सहता आया हूं। तलाक के पेपर भेजने वाली है जल्दी। फिर तो मैं मजे से चाहे जहां घूम सकूंगा आजाद पंछी की तरह।”

“वैसे ही कहां तुम दोनों एक दूसरे की जिंदगी में हस्तक्षेप करते हो जो तलाक की नौबत आ गई? क्यों लेना चाहती है वह तलाक?”

“बोदी, उसकी मन की बात मैं किया जानूं। जो उसे ठीक लगे, करने दो।”

सुहास ने यह बात जितनी सहजता से बताई थी, उतनी ही मैं असहज हो उठी थी।

“छोड़ो न बोदी। कला को जिसमें खुशी मिले, वही करने दो।”

मैं जानती हूं सुहास चाहे कितना भी सहज बनने की कोशिश करे, पर दर्द के कांटे न चुभते हों, ऐसा संभव नहीं। भाई से भी ज्यादा प्यारा है वह मुझे। वह भी हमारे लिए कुछ भी कर सकता है।

“चलेंगे क्या कुंभ मेले?” मैंने विश्वास से पूछा।

“चल सकते हैं। चार छुट्टियां एक साथ आ रही हैं, पर बचकर रहना साधुओं से। कहीं उनके चमत्कार में न फंस जाओ और वहीं धूनी रमा कर न बैठ जाओ। सुहास, अपनी बोदी को वापस लाने की जिम्मेदारी तेरी। शादी के सात साल हो गए हैं और संतान नहीं है, इसलिए किसी न किसी साधु या बाबा के पास जाती रहती है और चमत्कार होने की उम्मीद करती है,” विश्वास ने मेरी ओर देखते हुए कहा।

“तुम भी बस जो मन में आए बोलते हो। एक ही बार तो गई थी एक बाबा के पास,” मैंने चिढ़ते हुए कहा।

“आप दोनों की नोंक-झोंक खत्म हो जाए तो पैकिंग कर लेना। नासिक की टिकट बुक हो गई है,” सुहास ने लैपटॉप बगल में दबाया और घर से निकलते हुए बोला, “कुछ फोटोग्राफी करके आता हूं।”

ट्रेन में नासिक को लेकर बातें होती रहीं कि समुद्र मंथन के पूरा होने के बाद से ही भक्तों ने यहां कुंभ मेला उत्सव मनाना शुरू कर दिया था। समुद्र से अमृत का कलश प्रकट हुआ। हालांकि, देवताओं और राक्षसों के बीच एक समझौता हुआ था कि वे अमृत को समान रूप से बांटेंगे। लेकिन, चूंकि देवता जानते थे कि राक्षसों के साथ अमृत साझा करना जीवित प्राणियों के लिए हानिकारक हो सकता है, और इसलिए, उन्होंने अमृत साझा न करने का फैसला किया और युद्ध शुरू किया जो बारह वर्षों तक चला। युद्ध के दौरान जब गरुड़ देव अमृत कलश लेकर उड़ रहे थे तो अमृत की कुछ बूंदें नासिक की गोदावरी नदी में भी गिरीं जिस कारण यहां कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।

“बोदी, गोदावरी नदी में स्नान करेंगी न?” सुहास ने पूछा तो विश्वास बोला, “अगर स्नान करने से संतान प्राप्ति होगी तो नीला अवश्य ऐसा करेगी।”

सुहास मुस्कराया। दादा और बोदी के प्यार को समझता है वह। कला के साथ उसका रिश्ता कभी ठीक से बन ही नहीं पाया तो प्यार कहां से पनपता।

“हो सकता है कुछ अमृत की बूंदें तुम्हारे जीवन में भी गिर जाएं इस बार नासिक में? वैसे उज्जैन के कुंभ मेले में ही तुम्हें सोफी मिली थी न?” विश्वास के सो जाने के बाद मैंने सुहास से पूछा।।

मेरा सवाल सुन कुछ देर वह मुझे देखता रहा। “आपको याद है वह अभी भी बोदी? तीन साल हो गए हैं उस बात को। बहुत बढ़िया चित्रकार है। उज्जैन के साधुओं से लेकर शिप्रा नदी के किनारे जुटी भीड़ और दुकान, बाजारों तक को उसने अपने कैनवास पर उतार लिया था। ढेर सारी पेंटिंग्स बनाई थीं उसने। फिर लौट गई थी फ्रांस। शायद भारत में एग्जीबिशन भी लगाई थी।”

“फिर कभी उससे मुलाकात या बात नहीं हुई?”

“फ्रांस लौटने के बाद उसने कुछ फोटो भेजने को कहा था ताकि उन्हें देख पेंटिंग बना सके। उसके बाद से कोई संपर्क नहीं हुआ।”

“तुम दोनों के बीच तो अच्छी ट्यूनिंग हो गई थी, फिर वह रुकी क्यों नहीं भारत या तुम ही चले जाते फ्रांस?”

“बोदी, उसने यह तो कहा था कि वह मुझे पसंद करने लगी है, पर उसके आगे कुछ नहीं।”

“और तुम भी तो उसे चाहने लगे थे। थोड़ा इंतजार करते। शायद लौट आती।” सुहास की आंखों में दर्द दिखा मुझे।

“दो साल पहले जब कला से मुलाकात हुई तो उसने ही मेरे साथ विवाह करने की इच्छा जताई थी। मैं मान गया था। सोफी से संपर्क करने का फिर ख्याल नहीं आया। अब कला के साथ नहीं निभी तो क्या कर सकते हैं।”

“याद आती है सोफी की?” न जाने क्यों मैं बार-बार उसे कुरेद रही थी। जानती थी कि सोफी उसके दिल में अभी भी बसी हुई है।

“बोदी, आप भी क्या बातें ले बैठीं। याद आती है या नहीं क्या फर्क पड़ता है।”

“हो सकता है इस बार भी कुंभ मेले में उससे भेंट हो जाए,” मैंने कहा। मैं सचमुच चाहती थी कि सोफी से सुहास की भेंट हो जाए। “तुम दोनों अभी तक सोए नहीं?” विश्वास ने करवट बदलते हुए कहा तो मुझे अपने प्रश्नों पर विराम लगाना पड़ा।

भीड़ देखकर मैं सहम गई थी, लेकिन उस वातावरण में ऐसा कुछ था कि धीर-धीरे घबराहट खत्म हो गई। गोदावरी नदी में विश्वास का हाथ थाम स्नान भी किया। सुहास तो कुछ देर हमारे साथ रहता फिर अपनी फोटोग्राफी करने निकल जाता। सोफी मेरे दिमाग में हर पल छाई रहती और किसी भी विदेशी को देखती तो मन में आस जगती। हालांकि वहां विदेशियों की संख्या भी कम नहीं थी।

“वापस आप दोनों को अकेले ही जाना होगा। अभी मैं नहीं चल सकूंगा।” रात की ट्रेन थी, हम पैकिंग कर रहे थे। सुहास की बात सुन हम चौंके।

“क्या हुआ? सब ठीक न?” विश्वास ने चिंतित स्वर में पूछा।

“हां दादा। बस कुछ नए असाइनमेंट मिल गए हैं,” ऐसा लगा जैसे सुहास बात टाल रहा है।

विश्वास कुछ देर के लिए बाहर गए तो मैंने पूछा, “सच बता, क्या है?”

“बोदी, सोफी आई है। कुछ दिन वक्त गुजारना चाहते हैं हम साथ में। दादा से नहीं कह सकता। आप समझा देना उन्हें।”

“लेकर आएगा क्या घर उसे?” मेरी खुशी छलकी जा रही थी। सोफी से कभी मिली नहीं थी लेकिन सुहास उसे पसंद करता है, यही मेरे लिए काफी था।

“पता नहीं बोदी। वापस लौटूंगा भी कि नहीं, कुछ कह नहीं सकता। फिलहाल यहीं रहूंगा।”

“तो जो भी फैसला ले, मुझे बता देना। इस बार किसी तरह का विषपान मत करना, अमृत की बूंद गिरे तो उसे हथेली में ले लेना।”

सुहास लौटेगा कि नहीं, सोफी को साथ लाएगा कि नहीं, सोफी साथ आएगी कि नहीं, कुछ नहीं जानती। सुहास जैसा मनमौजी व्यक्ति है तो उसके साथ कब, क्या, और क्यों कुछ घट जाए यह अप्रत्याशित है। लेकिन चाहती हूं प्यार के अमृत की बूंदें उसके जीवन को अवश्य भिगो दें।

-सुमन बाजपेयी

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