Got angry on being called aunty | आंटी बुलाए जाने पर आया गुस्सा: हम तुम्हारी आंटी नहीं, शुरू किया पॉडकास्ट; लोग कहते-आप हमारे मन की बात करती हैं

2 घंटे पहलेलेखक: कमला बडोनी

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40 की उम्र पार करने के बाद दो लेखिकाओं ने पॉडकास्ट शुरू करने का मन बनाया। उन्हें नहीं पता था कि लोग उन्हें पसंद करेंगे या नहीं। उन्हें बस अपनी बात लोगों तक पहुंचानी थी। दोनों ने पॉडकास्ट का नाम ऐसा रखा जो हर महिला की दुखती रग है। ‘नॉट योर आंटी’ पॉडकास्ट काफी पॉपुलर हो रहा है और इसे प्रस्तुत करने वाली लेखिकाएं भी काफी चर्चा में हैं। ‘ये हम हैं’ में मिलिए दो ऐसी महिलाओं से जो ये मानती हैं कि उम्र सिर्फ एक नंबर है, इरादे मजबूत हों तो उम्र किसी भी काम के आड़े नहीं आती।

ऐसे हुई ‘नॉट योर आंटी’ की शुरुआत

हमारा पॉडकास्ट देशभर में तीसरे नंबर पर ट्रेंड कर रहा है। लोग हमें पसंद कर रहे हैं जिससे काम करने का जोश बना हुआ है और मजा भी आ रहा है। अच्छा लगता है, जब लोग कहते हैं कि आपने वो बात कह दी जो हम कहना चाहते थे।

जो भी महिला 40 की उम्र पार कर लेती है उसे लोग ‘आंटी’ कहना शुरू कर देते हैं। बच्चे कहें तो समझ आता है, लेकिन जब हमउम्र लोग भी ‘आंटी’ कहने लगते हैं तो महिलाएं गुस्से से भर जाती हैं। जाहिर है इस बात पर गुस्सा आना वाजिब है इसलिए हमने अपने शो का नाम ‘नॉट योर आंटी’ रखा।

महिलाएं या बड़ी उम्र के लोग ही नहीं, टीनएजर को भी हमारा पॉडकास्ट पसंद आ रहा है। हम सिर्फ 40 की उम्र पार कर चुकी महिलाओं की बात नहीं करते, हम 40+ जेनरेशन के उन सभी मुद्दों पर बात करते हैं जो उनके मन में होते हैं, लेकिन वो उन सब बातों को जुबान पर नहीं ला पाते।

जेन जी, ऑनलाइन फ्रॉड, सोशल मीडिया का इन्फ्लुएंस, मेनोपॉज… हम अपने पॉडकास्ट में हर उस मुद्दे पर बात करते हैं जिस पर बात होनी जरूरी है। लेकिन सोसाइटी इन सवालों पर जवाब देने से बचती है।

यंग महिलाओं को भी ‘आंटी’ कहा जाता

मैं (शुनाली) जब मैं प्रोविजिन स्टोर पर घर का सामान खरीदने गई तो एक हमउम्र व्यक्ति ने कहा, ‘आंटी, जरा साइड हो जाना।’ मुझे उस पर बहुत गुस्सा आया। मैं उससे कहना चाहती थी कि मैं कम से कम तुम्हारी आंटी नहीं हूं, लेकिन तब तक वो आगे निकल चुका था। बच्चों के फ्रेंड आंटी कहते हैं तो बुरा नहीं लगता, लेकिन जब हमउम्र लोग ‘आंटी कहते हैं तो बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाता है।

घर आकर मैंने ट्वीट किया- ‘छोटी उम्र के लोग आंटी कहें तो कोई बात नहीं, लेकिन जो हमउम्र लोग मुझे ‘आंटी’ कहते हैं, मैं उनसे कहना चाहती हूं कि ‘मैं आपकी आंटी नहीं हूं।’ किरण ने मेरे ट्वीट के जवाब में अपना किस्सा बताया।

किरण ने वह किस्सा हमें बताते हुए कहा, ‘मेरी नई नई शादी हुई थी। उस समय लोकल इलेक्शन हो रहे थे इसलिए घर-घर जाकर वोट मांगने का सिलसिला जारी था। दरवाजे की घंटी बजी तो मैंने दरवाजा खोला। सामने सफेद बाल, चेहरे पर झुर्रियों वाले एक बुजुर्ग व्यक्ति खड़े थे। उन्होंने मुझसे कहा, ‘आंटी, आप हमें ही वोट देना।’

मैं ये सोचकर हैरान थी कि मैं कहां से इनकी आंटी हो गई। मेरी न सही, कम से कम अपनी उम्र का तो लिहाज करते।

तब मुझे महसूस हुआ कि महिलाओं के लिए ‘आंटी’ कहकर बुलाने के लिए उनकी उम्र से कोई लेना देना नहीं होता। आपको कोई भी, कहीं भी, कभी ही ‘आंटी’ कह सकता है। बस यहीं से ‘नॉट योर आंटी’ पॉडकास्ट का आइडिया आया।

हर मुद्दे पर बात होनी चाहिए

मेरे जैसे अनुभव से किरण भी गुजरी थीं। हम इस पर काम करना चाहते थे। इसके लिए हम कॉफी पर मिले। हमने महसूस किया कि 40 के बाद महिलाओं के जीवन में कितना बदलाव आ जाता है। इनके बारे में कोई बात नहीं करता, जिसके कारण उनकी समस्याएं खुलकर सामने नहीं आ पातीं।

जेन जी, मिलेनियर, प्लस साइज… हर मुद्दे पर बात होती है, लेकिन 40-50 की उम्र पार कर चुकी महिलाओं की लाइफ में होने वाले बदलाओं पर कोई बात नहीं करता।

सच्ची बात पसंद की जाती

हम जिस उम्र में हैं, हमारे पास लेखन और जीवन का अच्छा खासा अनुभव है। इस उम्र में हमें किसी भी टॉपिक पर बात करने से झिझक नहीं होती।

हम अपने आसपास और समाज के मुद्दों पर बात करते हैं जिन पर बात की जानी चाहिए, फिर चाहे फिल्में हों, टीनएजर की समस्याएं हों, बॉडी शेमिंग हो… हम घुमा-फिराकर बात करने के आदी नहीं। कड़वी बातें सीधे कह देते हैं। इसलिए लोग हमें पसंद कर रहे हैं। बात जब सच्ची हो और लोगों की जिंदगी से जुड़ी हो तो लोग उससे सीधा जुड़ते हैं और आपके काम को खुद ब खुद पसंद किया जाने लगता है।

मोटापे को ग्लैमराइज किया जा रहा

हमारा वो एपिसोड बहुत पसंद किया गया जिसमें हमने उन लोगों की बात की, जो अपने मोटापे को ग्लोरीफाई करते हैं। ये बात सही है कि किसी की भी ‘बॉडी शेमिंग’ नहीं की जानी चाहिए। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि शरीर को फूलने दिया जाए, मोटापे को कूल समझा जाए। सोशल मीडिया पर अपने मोटापे को फ्लॉन्ट किया जाए। ऐसे लोग जब सोशल मीडिया पर पॉपुलर होते हैं तो इससे उन लोगों को बढ़ावा मिलता है जो फिटनेस पर ध्यान नहीं देते। उन्हें लगता है कि मोटापा कोई बुराई नहीं, बल्कि कूल दिखने का नया, अनोखा तरीका है।

पढ़ने से ज्यादा सुना जा रहा

हम पहले जर्नलिस्ट रह चुके हैं। हम दोनों ने अपना जर्नलिज्म का करियर एक साथ शुरू किया। कई बड़े संस्थानों में काम करने का मौका मिला। शुनाली हिन्दुस्तान टाइम्स, वोग, एले, मिंट लाउंज जैसे अखबारों में लिखती रही हैं।

कई एडवरटाइजिंग कंपनीज के लिए भी काम किया। किरण मनराल अपने बारे में बताते हुए कहती हैं कि वो टेडेक्स की स्पीकर रह चुकी हैं। किरण को महिला अचीवर्स और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस सहित कई पुरस्कार भी मिले हैं। शुनाली अपनी एक किताब का जिक्र करते हुए कहती हैं कि उनकी सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबें ‘लव इन द टाइम ऑफ एफ्लुएंजा’ और ‘बैटल हाइमन ऑफ ए बेविल्डर्ड मदर’ है।

शादी के बाद घर और बच्चों की जिम्मेदारियां बढीं तो हमने स्वतंत्र लेखन शुरू किया। फ्रीलांसिंग की और किताबें लिखीं। रोमांस, पेरेंटिंग, हॉरर, साइकोलॉजिकल थ्रिलर, साइंस फिक्शन… हर तरह की किताबें लिखीं। इस तरह हम अपने पाठकों के साथ जुड़े रहे।

लोगों की पढ़ने की आदत कम होती जा रही है। ऐसे में हम लेखकों के पास अपने पाठकों से जुड़े रहने का आसान तरीका यही है कि उन्हें कहानियां सुनाई जाएं।

ऐसी बातचीत उन्हें तसल्ली देती है। वो ये सोचकर खुश होते हैं कि कम से कम अब उन मुद्दों पर भी बात होने लगी है जिन्हें टैबू मानकर लोग खामोश रह जाते हैं।

सोशल मीडिया का फायदा

शोनाली कहती हैं मैं और किरण मम्मी ब्लॉगर रह चुके हैं। कई लोग सोशल मीडिया की बुराई करते हैं, लेकिन इसका सही इस्तेमाल किया जाए तो इसके बहुत फायदे भी हैं। सोशल मीडिया के कारण हम ये समझ पाते हैं कि किन मुद्दों पर बात की जानी जरूरी है। डिजिटल वीडियो और सोशल मीडिया समाज में सांस्कृतिक बदलाव ला रहा है। इस वक्त का डॉक्यूमेंटेशन किए जाने की जरूरत है।

40 की उम्र का फायदा

किरण कहती हैं कि हम दोनों ये मानते हैं कि जब 40 की उम्र पार कर जाते हैं तो आपको इस बात की चिंता नहीं रहती कि लोग आपके बारे में क्या कहेंगे या क्या सोचते हैं। आपके पास अनुभव भी होता है और समझदारी भी। इसलिए आप कोई भी बात कहने से हिचकिचाते नहीं। हमारा पॉडकास्ट इसीलिए पसंद किया जा रहा है, क्योंकि हम हर मुद्दे पर खुलकर बात करते हैं।

आज वक्त की मांग है कि महिलाओं से जुड़ी उनकी समस्याओं और परेशानियों पर खुलकर बात हो। अगर समाज में कोई समस्या है तो उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। समाज में बुराइयों का होना जितना गलत है उतना ही गलत उन बुराइयों पर बात न होना है।

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