Father has a girlfriend, mother lives with her lover. | पापा अपनी प्रेमिका, मां प्रेमी के साथ रहती: बहन के साथ मैं भीख मांगती, खाने के लालच में स्कूल गई; बनी गरीबों का सहारा

नई दिल्ली1 घंटे पहलेलेखक: मरजिया जाफर

  • कॉपी लिंक

ओडिशा का सुदंरगढ़ जिला, जहां 16 परिवारों की जमीन भू-माफिओं के कब्जे से छुड़ाकर उनके असली हकदारों को सौंपी। आज कहानी उस जांबाज महिला की जिसने बचपन से कोई सुख-सुविधा नहीं देखी लेकिन उसके अंदर कम उम्र से ही समाज की अच्छाइयों और बुराइयों को पढ़ लेने की क्षमता है।

दैनिक भास्कर की ‘ये मैं हूं’ सीरीज में मिलिए एक ऐसी महिला से जिसने अपने मां बाप के रहते हुए अनाथों वाली जिंदगी गुजारी और आज खुद गरीब, शोषित और पिछड़े लोगों का सहारा बन रही हैं।

नमस्ते दोस्तों…

मैं बिदेसनी पटेल ओडिशा के सुंदरगढ़ में रह रहे आदिवासियों के अधिकारों के लिए काम कर रही हूं। इसमें पानी, सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा का काम शामिल है। मेरा पूरा फोकस एजुकेशन पर है। मैं उनकी लड़ाई लड़ती हूं। मैं अलग-अलग संस्थाओं के साथ मिलकर लोगों की मदद करती हूं।

बचपन की भयानक यादें

मेरा कोई गांव नहीं था। मुझे तो यह भी पता नहीं कि मैं कहां कि रहने वाली हूं। लेकिन सुना है पापा छत्तीसगढ़ के रहने वाले थे। मां और पापा ने लव मैरिज की थी। लेकिन उनकी कभी आपस में पटी नहीं। मां और पिता मेरे बचपन से ही अलग अलग रहते थे। पापा से झगड़ा होने की वजह से मां अलग रहने लगीं। झगड़े की वजह पापा के किसी दूसरी महिला के साथ रिश्ते थे। मां भी पापा से अलग होकर किसी और के साथ रहने लगीं।

मैं महिलाओं औ बच्चों के हक की लड़ाई लड़ रही हूं।

मैं महिलाओं औ बच्चों के हक की लड़ाई लड़ रही हूं।

भीख मांग कर बचपन गुजारा

पापा के जाने के बाद हम बेसहारा हो गए। मां बीमार रहतीं, वो काम नहीं कर पातीं। हमारा अपना घर भी नहीं था, जमीन नहीं, दुनिया में कोई सहारा देने वाला भी नहीं।

मैं मां के साथ ही रहती थी। उस दौरान बहुत ही मुसीबतों का सामना करना पड़ा। मां मुझे और मेरी छोटी बहन जो अब इस दुनिया में नहीं है, को गांव और शहर में भीख मांगने के लिए भेजती, जो भी पैसे मिलते उससे हमारा गुजारा होता। कभी कुछ नहीं मिलता तो भूखे पेट शाम को किसी धर्मशाला में या किसी पेड़ के नीचे सो जाया करते। यह समझ लीजिए गांव, गली, कूंचे में भीख मांग कर ही मेरा बचपन गुजरा। मां भीख मांगते-मांगते एक गांव में पहुंची। मेरे साथ मेरी छोटी बहन भी थी। गांव वालों ने कहा कि इतने छोटे बच्चों को लेकर कब तक भटकोगी। इसी गांव में किसी के घर का झाड़ू पोछ कर लो, गुजारे के लिए तो सही है। कम से कम बच्चों को इस कदर दर-दर भटकना तो नहीं पड़ेगा। यह सुझाव देने वाला मां का प्रेमी था।

मां का प्रेमी हमें छोड़कर चला गया

मां का प्रेमी भी हमें छोड़कर भाग गया। जिसके बाद हम भोजपुर गांव में बस गए जो ओडिशा के संबलपुर जिले में आता है। लोगों के घर का काम करके दो वक्त की रोटी बड़ी मुश्किल से मिल पाती। लेकिन मुसीबतें पीछा छोड़ने का नाम नहीं ले रही थीं। हमें गांव में काम करने के बावजूद खाने के लिए तरसना पड़ता।

शिक्षा की हमारी जिंदगी में क्या अहमियत है यह लोगों को समझाना बहुत जरूरी है।

शिक्षा की हमारी जिंदगी में क्या अहमियत है यह लोगों को समझाना बहुत जरूरी है।

खाने की लालच में स्कूल में एडमिशन लिया

गांव वालों से हमारी हालत देखी नहीं गई। उनका कहना था कि स्कूल में बच्चों को खाना मिलता है। अगर इन बच्चों का भी स्कूल में एडमिशन करा दिया जाए तो कम से कम एक वक्त का खाना स्कूल से ही मिल जाएगा। जबकि मेरी और मेरी बहन की स्कूल में एडमिशन कराने की उम्र भी नहीं थी। सिर्फ खाने की लालच में स्कूल में एडमिशन लिया। एक वक्त का खाना लोगों के घर झाड़ू पोछा करके मिलता और एक वक्त का स्कूल में पढ़ाई करने की वजह से मिल जाता था।

पढ़ाई में दिलचस्पी बढ़ने लगी

वैसे तो मैं खाने के लालच में स्कूल जाती थी। लेकिन मुझे पढ़ाई करना अच्छा लगने लगा। पढ़ाई में मेरी दिलचस्पी बढ़ने लगी। मुझे लिखने का, गाने का, एक्टिंग करने का शौक था। मैं स्कूल टाइम से ही कुछ न कुछ लिखने लगी। स्कूल में टीचर भी कहते कि ये लड़की पढ़ाई में अच्छी है। सबको मिलकर इसकी मदद करना चाहिए।

पापा हमें ढ़ूढ़ते हुए गांव पहुंचे

सब कुछ सही चल रहा था। हमें दो वक्त की रोटी के साथ शिक्षा भी मिल रही था। एक दिन पापा हमें ढ़ूढ़ते ढ़ूढ़ते उसी गांव में पहुंचे जहां हम रह रहे थे। पापा और मां के बीच फिर से खूब लड़ाई झगड़ा हुआ। मारपीट तक की नौबत आ गई। पापा मां को ताना देते कि तुम लड़का पैदा नहीं कर पाई। पापा ने हम बहनों को भी मारा-पीटा सिर्फ पापा ही नहीं मां भी हमें बहुत मारती थीं।

आज भी कुछ ऐसे गांव है जहां जरूरी चीजें भी नहीं मुहैया है।

आज भी कुछ ऐसे गांव है जहां जरूरी चीजें भी नहीं मुहैया है।

पापा का गुस्सा मां हम बहनों पर निकालतीं

पापा तो लड़ाई झगड़ा करके चले गए। लेकिन मां भी हर वक्त हम दोनों बहनों को मारती पीटती रहतीं। मुझे लड़ाई झगड़ा पसंद नहीं है। मैं पढ़ना चाहती थी। कुछ बनना चाहती थी। एक दिन मैंने तंग आकर घर छोड़ने का फैसला कर लिया। घर छोड़ने का ख्याल मन में बहुत दिनों से चल रहा था लेकिन कहां जाऊंगी, क्या करूंगी यह सब सोचकर मेरे कदम ठहर जाते। कई बार मन में आत्महत्या करने का भी ख्याल आता। कई बार अपनी बहन से मैं कहती भी कितना मार खाएंगे चलो, कहीं चलते हैं, लेकिन बहन कहीं जाने से मना कर देती। एक दिन मैंने फैसला कर लिया कि अब इस नर्क में नहीं रहना है, मैं अकेले ही घर छोड़कर निकल गई।

गांव में अंगना होते हैं। मैं कुछ दिन गांव में ही उसी अंगना में रहने लगी। एक दिन मुझे किसी ने ‘थ्रेड’ नाम के एनजीओ के बारे में बताया। बताया गया कि वहां चली जाओ, वहां तुमको खाना पीना रहने के साथ हजार रुपए के आसपास सैलरी भी मिल जाएगी। मैं उसके बताए एड्रेस पर चली गई। मुझे काम मिल गया। 5-6 दिन काम करने के बाद और थोड़ी बहुत ट्रेनिंग देने के बाद मुझे बलांगीर जिले भेज दिया गया। मुझे ज्यादा कुछ पता नहीं था कि कैसे काम करना है। वहां मुझे महिलाओं के लिए काम करना था।

मुझे लोगों से बहुत प्यार मिला

मुझे सिर्फ इतना पता था कि लोगों को जैविक खेती के बारे में बताना है। वहां जब गई तो लोगों से मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगा। सब मुझसे प्यार से बात करते। खाना खिलाते। ये सब तो मैंने इससे पहले कभी देखा ही नहीं था वहां पहुंच कर लगा मैं किसी और ही दुनिया में आ गई। मैंने सोच लिया अब यहीं रहूंगी, अब कभी वपस नहीं जाऊंगी। लेकिन एक दिन वहां से भी मेरा ट्रांसफर सुंदरगढ़ हो गया।

लोगों की जमीन हड़पी जा रही थी

सुंदरगढ़ में एक कंपनी आई और गलत तरीके से गरीब किसानों की जमीन हड़प रही थी। मैंने कुछ महिलाओं के साथ मिलकर कंपनी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। इसका नतीजा ये हुआ कि मुझे कंपनी के लोग मुझे ढ़ूढ़ने लगे। उनका मानना था कि मैं लोगों को भड़का रही हूं। कई भू-माफिया मेरे पीछे पड़ गए। गांव वालों ने मेरी जान को खतरा बताते हुए मुझे रातों रात जांधई पहुंचा दिया।

मैं जिस गांव में गई वहां की कुछ अलग ही परेशानियां देखने को मिलीं। उस गांव में न तो पानी था न बिजली और न सड़क। गांव के लोग बेसिक सुविधाओं से भी दूर थे। गांव को माविस्ट गांव कहकर बदनाम किया गया है। मुझे भी लोगों ने वहां जाने से मना किया था। लेकिन मैं गई, वहां मैंने लोगों की मुश्किलों को देखा, समझा और उनके हक के लिए लड़ रही हूं।

मेरे दर्द को समझने वाला कोई नहीं

मैंने अपने ऊपर ही एक गाना लिखा है। जब मन ज्यादा दुखी होता है मैं उस गाने को गुनगुना लेती हूं।

खबरें और भी हैं…

#Father #girlfriend #mother #lives #lover #पप #अपन #परमक #म #परम #क #सथ #रहत #बहन #क #सथ #म #भख #मगत #खन #क #ललच #म #सकल #गई #बन #गरब #क #सहर