Elder daughter helped mother in delivery | बड़ी बेटी ने मां की डिलीवरी कराने में मदद की: बड़ी बेटी पहले होती परिपक्व, छोटे भाई-बहनों की मां जैसी करती देखभाल

नई दिल्ली3 घंटे पहलेलेखक: संजय सिन्हा

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बड़ी बेटी यानी परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ उठाने वाली लड़की जो अपनी मां के दूसरे छोटे बच्चों की देखभाल करती है। वो बड़ी बहन से ज्यादा मां की भूमिका में खुद को पाती है।

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च में बताया गया है कि बड़ी बेटी (फर्स्ट बॉर्न डॉटर) दूसरे बच्चों के मुकाबले जल्दी परिपक्व होती है।

बड़ी बेटी में एड्रेनल प्यूबर्टी अधिक होती है। एड्रेनल प्यूबर्टी का मतलब जल्दी पीरियड्स आना नहीं है, न ही शरीर का ग्रोथ है बल्कि समय से पहले परिपक्व होना है।

स्टडी की सह लेखिका और साइकोलॉजिस्ट जेनिफर हान हॉलब्रुक ने बताया है कि जब लड़की की मां प्रेग्नेंट होती है तो मां ही चाहती है कि उसकी बड़ी बेटी जल्दी से जल्दी घर के कामकाज संभाल ले। यानी बड़ी बेटी मां की सहयोगी के रूप में तैयार होती है।

‘साइकोन्यूरोएंडोक्रायोनोलॉजी’ के प्रकाशित स्टडी में बताया गया है कि अपने छोटे भाई बहनों की देखभाल करने से घर की बड़ी लड़की मानसिक रूप से बहुत परिपक्व हो जाती है।

दूसरी मां या ‘लिटिल पेरेंट’ जैसी हो जाती बड़ी बेटी

शोधकर्ताओं ने 15 वर्षों तक कई परिवारों को ट्रैक किया। पहले, दूसरे, तीसरे बच्चे होने तक मां किन-किन तनावों से गुजरी और बड़ी बेटी ने किस तरह उनकी मदद की, इसे नोट किया गया।

राइटर और आर्टिस्ट येल वुल्फे बताती हैं कि जब वह 11 साल की थीं तब उनके छोटे भाई का जन्म हुआ।

भाई के जन्म से पहले ही उन पर जिम्मेदारियों का बोझ आ गया। भाई जब इस दुनिया में आ गया तब तो उनका रूटीन ही बदल गया।

घंटों भाई को पालने में झुलाना, सुलाना और नजर रखना कि वो ठीक तो है न। येल 4 भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं।

येल बताती हैं कि अपने छोटे भाई को पालते हुए वह खुद को मां जैसा महसूस करतीं। आप इसे ‘सेकेंड मॉम’ या ‘लिटिल पेरेंट’ कह सकते हैं।

मायके आकर मां की डिलीवरी कराने में मदद की

बिहार के भोजपुर की रहने वाली शैल कुमारी कहती हैं वो 5 भाई-बहन हैं। घर की बड़ी बेटी हूं। जब 14-15 साल की थीं तब मां प्रेग्नेंट हुईं। घर में पहले से छोटे भाई-बहन थे। जब डिलीवरी का टाइम नजदीक आने लगा तो सारी जिम्मेदारियों का बोझ उन पर आ गया।

खाना पकाना, कपड़े धोना, घर की साफ-सफाई, भाई-बहन, पिता की देखभाल सबकुछ। घर पर मां की डिलीवरी हुई, एक और भाई का जन्म हुआ। तब प्रसूता महिला बच्चे के जन्म देने के 8 दिनों बाद तक कमरे से भी नहीं निकलती थी, इसे ‘सौरी’ कहते हैं। तब घर की सारी जिम्मेदारी उन्होंने उठायी।

शैल कहती हैं कि जब 18 साल की उम्र में शादी होकर वो ससुराल चली गईं तब उनकी मां फिर से प्रेग्नेंट हुईं। मां की देखभाल करने के लिए वो वापस मायके आईं। इस बार लड़की का जन्म हुआ। राजकुमारी की वह बहन उनसे 18 साल से ज्यादा छोटी है।

बेटे या परिवार के छोटे बच्चे जिम्मेदारी से मुक्त रहते

शोधकर्ताओं ने बताया है कि अगर घर में बड़ा बेटा है तो उस पर इस तरह की जिम्मेदारी नहीं होती। या फिर घर में भाई-बहनों में छोटी बेटी है तो उससे ज्यादा उम्मीद नहीं की जाती।

हैदराबाद स्थित ओस्मानिया यूनिवर्सिटी की साइकोलॉजिस्ट पी. स्वाति कहती हैं कि लड़कों के मुकाबले लड़कियां बच्चे की देखभाल बेहतर करती हैं।

परिवार में भाई-बहनों में भाई बड़ा है तो वह अपने नवजात छोटे भाई या बहन की देखभाल कम करेगा। लेकिन यदि भाई बहनों में बहन बड़ी है तो वह मां की परछाई बन जाती है।

भाई को समय समय पर दूध की बोतल देना, उसे गोद में लेकर झपकी देना, लोरी सुनाना, पालने में झुलाना, उसके डायपर बदलना, उसकी मालिश करना, ये सारे काम बड़ी बेटी कर पाती है भाई नहीं।

इन जिम्मेदारियों की वजह से लड़कियां समय से पहले बड़ी हो जाती हैं।

साइकोलॉजिस्ट अलफ्रेड एडलर ने ‘फैमिली ऑर्डर थ्योरी’ दी है। वो बताते हैं कि किसी परिवार में जिस ऑर्डर या क्रम में बच्चे जन्म लेते हैं उनका विकास और व्यक्तित्व उसी तरह विकसित होता है।

घर में बड़े बच्चे पर ज्यादा जिम्मेदारी होती है तो उसे आजादी नहीं मिल पाती जबकि छोटे बच्चे पर जिम्मेदारी कम होती है तो वह अधिक क्रिएटिव होता है।

छोटे भाई-बहन पर उतना अनुशासन नहीं होता जितना कि बड़ी बेटी पर। छोटे भाई-बहनों पर सख्ती में ढील दी जाती है।

पंंजाब यूनिवर्सिटी में जेंडर स्टडीज की प्रोफेसर डॉ. अमीर सुलताना बताती हैं कि रिसर्च कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की है लेकिन भारतीय परिवेश पर बिल्कुल फिट बैठती है।

कुछ वर्षों पहले तक जब संयुक्त परिवार का चलन अधिक था तब बड़ी बेटियों पर जिम्मेदारी अधिक रहती थी। गांव-कस्बों में महिलाएं घर से बाहर कम निकलती थीं। एक परिवार में 4-5 बच्चे सामान्य बात थी। तब बड़ी बेटी मां जैसी हो जाती।

आज भी जिन परिवारों में दो-तीन बच्चों में ज्यादा गैप है वहां बड़े बच्चे ज्यादा काम करते हैं। खास कर लड़कियां समय से पहले परिपक्व हो जाती हैं और घर की जिम्मेदारी उठाती हैं।

स्ट्रेस और एंग्जाइटी से जूझती हैं बड़ी बेटियां

रिसर्च में बताया गया है कि घर की बड़ी बेटी ज्यादा चुनौतियों को झेलती है, खुद की चिंता करने के बजाय अपने भाई-बहन, पेरेंट्स के दुख-सुख का ध्यान रखती है।

ऐसा करने से उनमें लीडरशिप क्वालिटी आती है। लेकिन उन्हें इसकी कीमत भी चुकानी पड़ती है।

पी स्वाति कहती हैं कि भारत में कई ऐसे परिवार मिल जाएंगे जहां बड़ी बेटियों को त्याग करना पड़ता है। अपने करियर, अपने सपनों की बलि चढ़ानी पड़ती है।

कम उम्र में जिम्मेदारियों का बोझ उठाने से उनमें स्ट्रेस, एंग्जाइटी, डिप्रेशन देखने को मिलती है।

जब उनकी शादी होती है तो उनके भी बच्चे होते हैं। वो फिर अपने बच्चे पालती हैं। उसे खुद को रिलीव देने का मौका ही नहीं मिलता। यानी जो उन्होंने अपने बचपन में किया वही चीज अपने बच्चे के लिए करती हैं। उनकी भूमिका नहीं बदलती।

इसलिए कई बार वो पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से जूझती हैं।

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