Divyanka Tripathi Husband; Vivek Dahiya Struggle Story | Bollywood News | एक्टर से पहले पिज्जा डिलीवरी बॉय थे विवेक दहिया: कई रातें सिर्फ बिस्किट खाकर गुजारा किया, सोनम कपूर-अनुष्का की फिल्म से निकाले गए थे

18 घंटे पहले

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पहले यह तस्वीर देखिए..

तस्वीर में नीले कुर्ते में दिखाई दे रहे शख्स एक्टर विवेक दहिया हैं। उनके साथ टीवी एक्ट्रेस दिव्यांका त्रिपाठी हैं। दोनों ने 2016 में शादी की थी। विवेक ने ये है मोहब्बतें, कवच, नच बलिए जैसे टीवी शोज में काम किया है। 2023 में रिलीज हुई फिल्म चल जिंदगी में उन्होंने लीड रोल प्ले किया था।

विवेक का बचपन तो सामान्य बीता, लेकिन इससे आगे की जिंदगी में सिर्फ और सिर्फ संघर्ष रहा। कम उम में ही उन्हें बार, टिश्यू पेपर फैक्ट्री में काम करना पड़ा। मुंबई गए तो तंगी ऐसी थी कि कई रात उन्होंने सिर्फ पारले जी बिस्किट खाकर गुजारी।

पढ़िए विवेक दहिया के संघर्ष की कहानी उन्हीं की जुबानी…

विवेक का जन्म 8 नवंबर 1984 को चंडीगढ़ में हुआ था। विवेक ने बताया कि एक सामान्य बच्चे की तरह उनका बचपन भी बीता था।

विवेक का जन्म 8 नवंबर 1984 को चंडीगढ़ में हुआ था। विवेक ने बताया कि एक सामान्य बच्चे की तरह उनका बचपन भी बीता था।

विवेक ने बताया कि उन्हें बचपन से ही एक्टिंग का शौक था, मगर परिवार का माहौल ऐसा था कि ग्रेजुएट होने के तुरंत बाद वो एक्टर बनने का फैसला नहीं कर सकते थे। इस बारे में उन्होंने कहा, ‘मुझे बचपन से ही परफॉर्मेंस का कीड़ा था। घर हो या स्कूल, हमेशा लोगों को एंटरटेन करता था। कह सकते हैं कि मुझे हमेशा से लाइमलाइट में रहना पसंद था। हालांकि, तब कहीं भी एक्टर बनने का ख्याल नहीं था।

बढ़ती उम्र के साथ फिल्में देखने पर स्टार्स की लाइफ स्टाइल लुभाने लगी। हीरो के जैसे डांस, गाने और अजीबो-गरीब स्टंट करने का मन करने लगा, मगर यह बात घर में बताने की हिम्मत नहीं थी। पापा की सोच हमेशा से अलग थी। उनके लिए हरियाणा के एक गांव से निकलकर चंडीगढ़ में बतौर वकील खुद की पहचान बनाना आसान नहीं था। इस काम को करने में उन्हें 30-35 साल लगे थे।

यही वजह थी कि वो चाहते थे कि मैं आगे चलकर उनकी विरासत संभालूं और वकील बन जाऊं। वकील बनने के अलावा दूसरे ऑप्शन भी थे, लेकिन यह क्लियर था कि मैं ऐसी फील्ड में जाऊं जिसमें जॉब सिक्योरिटी हो। ऐसे में मैंने कुछ समय के लिए एक्टर बनने का ख्याल छोड़ दिया था।’

एक फ्रेम में पापा, मां, बहन और पत्नी के साथ विवेक दहिया।

एक फ्रेम में पापा, मां, बहन और पत्नी के साथ विवेक दहिया।

विवेक एक्टर बनने का ख्याल छोड़ मास्टर डिग्री के लिए इंग्लैंड चले गए थे। यहां उन्होंने डी मोंटफोर्ट यूनिवर्सिटी से बिजनेस मैनेजमेंट किया। विवेक का यह सफर भी आसान नहीं था। यहां पर भी उन्हें खुद की जीविका के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी।

इस सफर के बारे में विवेक ने कहा, ‘इंग्लैंड जाना भी मेरी ख्वाहिश थी और वहां का संघर्ष भी मेरा खुद का था। वहां पर मैंने पहली नौकरी टिश्यू पेपर फैक्ट्री में की थी। कंपनी में मेरी जॉइनिंग छोटे पद पर हुई थी, क्योंकि वहां का रूल था कि वो इंटरनेशनल लोगों को क्लाइंट फेसिंग जॉब पहले नहीं देते थे। उस कंपनी में मेरा काम टिश्यू पेपर गिनना होता था। मैं हर दिन रात में 5000 टिश्यू पेपर गिनता था। मैंने 2 महीने काम करने के बाद यह नौकरी छोड़ दी थी।

दूसरी नौकरी मैंने बार में की। वहां मेरी जॉइनिंग बार टेंडर के तौर पर हुई थी, लेकिन काम ग्लास कलेक्टर का मिला। जब पहले दिन पूरी रात फ्लोर पर गिरा हुआ ग्लास इक्ट्ठा किया तब कमर की हालत खराब हो गई। सीधा खड़ा भी नहीं हो पा रहा था, मगर मजबूरी थी इसलिए यह काम करता गया। गनीमत ये रही कि हफ्ते में सिर्फ शुक्रवार और शनिवार ही काम पर जाना होता था। ऐसे में शरीर को आराम मिल जाता था।

कुछ समय बाद यह नौकरी छोड़ मैंने तीसरी नौकरी रिटेल शॉप में की। यहां मुझे कपड़ों का साइज का लेबल लगाना था। यह काम बहुत आरामदायक था। फिर चौथी नौकरी कॉल सेंटर में की। इस नौकरी को छोड़ने का इरादा नहीं था, लेकिन करीब 3 साल बाद कंपनी ने सारे इंटरनेशनल लोगों की छंटनी कर दी, मेरी भी कर दी।

बेसहारा मैं नौकरी की तलाश में जगह-जगह घूम रहा था, तभी मेरी नजर एक बोर्ड पर पड़ी, जिस पर लिखा था- डोमिनोज पिज्जा में डिलीवरी बॉय की तलाश है। बिना वक्त गंवाए मैं नौकरी के बारे में पता करने चला गया। थोड़ी बातचीत के बाद नौकरी पक्की भी हो गई। यहां 6 महीने काम किया था, फिर इसे भी छोड़ दिया।

यह नौकरी छोड़ने की सबसे बड़ी वजह ये थी कि मैं पिज्जे की महक से पागल हो गया था। सुबह-शाम बस पिज्जा-पिज्जा। लंच और डिनर में भी बस पिज्जा ही खाता था। मानो नसों में खून की जगह पिज्जा भर गया हो। इसके बाद एक कॉल सेंटर में नौकरी की, फिर मास्टर करके चंडीगढ़ वापस आ गया।’

विवेक ने आगे कहा, ‘चंडीगढ़ आने पर मुझे वैसे नौकरी नहीं मिली, जिसकी मुझे तलाश थी। मन में अभी भी कहीं ना कहीं एक्टर बनने की चाहत बाकी थी। डर था कि पापा अभी भी इसके लिए तैयार नहीं होंगे। वो एक-दो लड़कों का उदाहरण देकर कहते थे- देखो ये एक्टर बनने गया था, मुंबई में अपने जिंदगी के इतने साल बर्बाद कर दिए, लेकिन इसके बाद भी कुछ बड़ा नहीं कर पाया।

विचारों के इसी उथल-पुथल के बीच एक दिन मां ने कहा- जब यहां तुम्हें मनपसंद नौकरी नहीं मिल रही है, तो तुम मुंबई चले जाओ। मां की बात सुन मैं खुशी से फूला नहीं समाया। विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उन्होंने ऐसा कहा है। पापा को मनाना अभी भी बाकी था।

मैंने पापा से कहा- मैं सिर्फ 6 महीने के लिए मुंबई जाना चाहता हूं। अगर इन 6 महीनों में कुछ बात बनी तो ठीक, वर्ना मैं वापस आ जाऊंगा। मेरे पास तो 6-7 साल काम का एक्सपीरिएंस भी है। मुंबई से आने के बाद इसी के आधार पर काम की तलाश कर लूंगा। मेरी यह बात सुनकर पापा मान गए और मेरा मुंबई आना हुआ।’

विवेक 30-32 साल के थे, जब उन्होंने मुंबई की सरजमीं पर पैर रखा था। एक्टिंग और कास्टिंग की दुनिया से अनजान विवेक को हर कदम पर ठोकर खानी पड़ी। कई लोगों ने उनका हौसला भी तोड़ना चाहा। इस सफर के बारे में उन्होंने बताया, ‘मुंबई आने पर कुछ भी नहीं पता था। लोगों से पूछ-पूछ कर ऑडिशन देने जाता था। वहां पर भी लोगों से जान पहचान बनाता। ऐसे करके नेटवर्क बनता गया और लोगों से पहचान होती गई।

उस वक्त कास्टिंग डायरेक्टर का इतना क्रेज नहीं था। कोऑर्डिनेटर से हमें सीधे कॉन्टैक्ट करना पड़ता था। कई बार उनके बयान इतने आपत्तिजनक होते थे कि दिमाग खराब हो जाता था। उस वक्त मुझे NOT FIT का मतलब भी नहीं पता था।

पहली बार जब मुझे NOT FIT कहा गया तो मैं सरप्राइज रह गया। समझ में नहीं आया कि इतना फिट होने के बाद क्यों NOT FIT बोला गया। कुछ समय बाद पता चला कि लुक के हिसाब से फिट ना होने पर NOT FIT का टैग मिलता है।

मुंबई के स्ट्रगल में पैसों की तंगी भी फेस करनी पड़ी। मैं थोड़े ही पैसे लेकर मुंबई आया था। 6-7 महीने तक कोई काम नहीं मिला। पैसे भी खत्म होने लगे। महीने की पहली तारीख को घर का किराया देना रहता था। 27-28 तारीख से ही परेशान रहने लगता था। तंगी में तो कई रात सिर्फ पारले बिस्किट खाकर गुजारनी पड़ी।

मैं जहां रहता था, वहां पास में एक ब्रेड शाॅप थी। उस शाॅप का रूल था कि दिन भर का बचा हुआ खाना वो रात में फेंक देते थे। यह बात मुझे पता थी। ऐसे में मैंने शॉप के मैनेजर से दोस्ती कर ली। फिर दिन भर का बचा हुआ खाना मांग लेता, जिसमें ब्रेड या कप केक होते थे। वही मेरा डिनर हो जाता था। ऐसा करके भी मैंने कई रातें गुजारी हैं।’

विवेक ने करियर की शुरुआत में ही फिल्मों में किस्मत आजमाई थी। मगर वो फेल हो गए थे। विवेक ने कहा, ‘मैंने 2014 में रिलीज हुई सोनम कपूर की फिल्म खूबसूरत के लिए ऑडिशन दिया था, मगर रिजेक्ट हो गया था। दरअसल, किसी शख्स ने मुझे कहा था कि जिस तरह का लड़का मेकर्स को चाहिए, मैं उस हिसाब से बिल्कुल फिट हूं। उस शख्स की बात सुन मैं कास्टिंग टीम से मिलने चला गया।

इंग्लिश में हुई बातचीत और लुक से वो लोग बहुत इम्प्रेस हुए। आगे उन्होंने लुक टेस्ट के लिए कहा। फिर जब मैं कैमरे के सामने आया, तो घबराने लगा। कुछ कर ही नहीं पाया। तब उन लोगों ने एक स्क्रिप्ट दी और घर जाकर प्रैक्टिस करने के लिए कहा।

मेरे लिए यह बड़ा मौका था। इसे मैं गंवाना नहीं चाहता था। इसके लिए पूरी रात तैयारी की। हर एक सीन को परफेक्ट तरीके से तैयार किया, लेकिन जब अगले दिन सेट पर गया तो उन्होंने स्क्रिप्ट में बदलाव कर दिया। यह सब देख मैं हिल गया। कैमरे के सामने कुछ कर ही नहीं पाया। पसीने से तर-बतर हो गया। तब उन लोगों ने कहा- विवेक, तुम्हें एक्टिंग सीखने की जरूरत है। ऐसे काम नहीं हो पाएगा।

मैंने बहुत मिन्नतें कीं, लेकिन वो नहीं माने। उनका कहना भी गलत नहीं था। जो एक्टिंग के गुण NSD और FTII में सिखाए जाते हैं, उनसे मेरा कभी परिचय नहीं हुआ था। इस कारण मुझे इतने बड़े प्रोजेक्ट से हाथ धोना पड़ा। मेरे बाद इस रोल के लिए एक्टर फवाद खान को कास्ट किया गया।

एक किस्सा यह भी है कि मेरा फिल्म ऐ दिल है मुश्किल में टाॅप 5 में सिलेक्शन हुआ था। जिस रोल के लिए मैं चुना गया था, आखिर में वो रोल फवाद खान को मिल गया था। यह अजीब इत्तफाक है कि दोनों ही फिल्मों में मुझे फवाद खान से रिप्लेस किया गया।

जब फिल्मों में बात नहीं बनी तो लोगों के कहने पर मैं टीवी इंडस्ट्री में काम करने लगा। सोचा यहां काम करके खुद को परफेक्ट कर लूंगा, फिर फिल्मों में वापस चला जाऊंगा। पर ऐसा नहीं हुआ। जब वापस फिल्मों में काम मांगने गया तो लोगों ने टीवी एक्टर का टैग लगाकर रिजेक्ट कर दिया। यह वाकई खराब पल था।

अभी भी हालात कुछ ऐसे ही हैं। उम्मीद है कि आगे वाले समय में कुछ बेहतर हो जाए।’

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