After the British came to India, sweets made from bread soaked in syrup got the Nawabi taste; eat carefully | शाही टुकड़ा की कहानी: अंग्रेजों के भारत आने के बाद चाशनी में डूबे ब्रेड से बने मीठे को मिला नवाबी टेस्ट; संभलकर खाएं

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नई दिल्ली7 दिन पहलेलेखक: मरजिया जाफर

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चाशनी में डूबी मुगलई मिठाई के आज भी लाखों दीवाने हैं। इसीलिए दिल्ली में डिप्लोमैटिक डिनर के मेन्यू में शाही टुकड़ा ज्यादातर मौजूद होता है।

आज ‘फुरसत का रविवार’ है। वैलेंटाइन वीक शुरू होने में कुछ ही दिन बाकी हैं। अच्छा होगा आने वाले रोमांस में डूबे इस सप्ताह को यादगार बनाने के लिए मीठे पर कुछ चर्चा हो जाए। शाही मिठाइयों में सबसे उम्दा शाही टुकड़े का जायका चखते हैं। साथ ही इस महकते मीठे के वजूद के बारे में भी बात करेंगे।

शाही मिठाई में शाही टुकड़े की अहमियत सबसे ज्यादा है।

शाही मिठाई में शाही टुकड़े की अहमियत सबसे ज्यादा है।

शाही टुकड़े से जुड़े कुछ महकते किस्से

मुगल जब भारत आए तब सूफी संगीत और कलाओं के अलावा लजीज पकवानों की लंबी फेहरिस्त भी लाए। इसमें सिर्फ कबाब या मुर्ग शाही कोरमा ही नहीं बल्कि मिठाइयां भी शामिल थीं। देसी मिठाइयों की दुनिया में शाही टुकड़ा जुबान के साथ साथ दिलों में भी एक खास जगह रखता है। शाही टुकड़ा जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि यह राजघरानों में बनने वाला मशहूर मीठा है। उत्सवों और त्यौहारों के मौके पर भी इसे पसंद किया जाता है।

शाही टुकड़ा दूध, चाशनी, ब्रेड या रोटी, खोया, बादाम, पिस्ता, खजूर से तैयार की जाती है। इसमें ब्रेड को घी में फ्राई किया जाता है, फिर इसे चाशनी में डुबोकर रखा जाता है। ठंडा होने के बाद ड्राई फ्रूट से सजाकर शाही टुकड़ा परोसा जाता है। यह मिठाई अपनी शाही और राजस्थानी खासियत के लिए मशहूर है। यह मीठा दिवाली, विवाह या किसी समारोह के लिए बनाया जाता है।

मुगल शाही टुकड़ा भारत लेकर आए

इस मीठे का आविष्कार मुगलकाल में हैदराबाद में हुआ। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि 1600 के दशक में मुगल शाही टुकड़ा दक्षिण एशिया में लेकर आए और तभी भारत में पहली बार शाही बावर्ची खाने में शाही टुकड़ा बना। इसे रमजान के पाक महीने में काफी पसंद किया जाता है।

किस्से कहानियों की चाशनी में डूबा शाही टुकड़ा

कुछ इतिहासकार यह भी मानते कि यह मिस्र में पहली बार पुडिंग के रूप में बना। जिस खानसामने यह पुडिंग बनाई उसी के नाम पर इस व्यंजन का नाम

‘उम अली’ रखा गया। कहा जाता है कि अपने साथियों के साथ शिकार पर निकले सुल्तान नील नदी के किनारे एक गांव में रुके। भूखे शाही मेहमानों के लिए खाने बनाने की जिम्मेदारी उम अली को दी गई। उम अली ने बासी रोटी, मेवे, दूध और चीनी को मिलाकर पकाया और जो मीठा तैयार हुआ उसे सुल्तान को परोसा गया। सुल्तान को यह मीठा पसंद आया और यह मीठा शाही रसोई का हिस्सा बन गया। वहीं से इस मीठे उम अली का नाम भी मिला।

मगर मशहूर शेफ रणवीर बरार इस कहानी से हटकर एक और कहानी बताते हैं। उनका कहना है कि ब्रेड से बनने वाली यह डिश शाही रसोई से नहीं निकली, लेकिन स्वाद में उसने जरूर नवाबी हैसियत हासिल कर ली है।

शाही टुकड़ा का नाम कैसे पड़ा?

शाही टुकड़ा के नाम से लगता है कि यह मुगलों की शाही रसोई से निकला मीठा है। लेकिन ऐसा नहीं है। शाही टुकड़ा ब्रेड से बनता है, और ब्रेड पुर्तगालियों के साथ भारत पहुंची। हालांकि ब्रेड को भारत में फेमस होने में काफी समय लग गया। नवाब भारत में ब्रेड यानी डबल रोटी के आने से पहले से थे तो, आपके जेहन में यह सवाल कभी न कभी जरूर आया होगा कि ब्रेड से बनने वाला शाही टुकड़ा नवाबी डिश कैसे कही जा सकती है?

वास्तव में, ब्रेड के आने से पहले भारत में शाही टुकड़ा नाम की कोई डिश नहीं थी। शाही टुकड़ा पहली बार कब बना और किसने बनाया इसका कोई सही-सही उत्तर देना मुश्किल है। लेकिन कुछ हद तक इसके नाम में इसके जवाब का सुराग जरूर मिलता है।

शेफ रणवीर बरार बताते हैं कि पहले लखनऊ में ‘बलाई’ होती थी। यानी मलाई की मोटी-मोटी परतों से बनी एक किस्म की मिठाई। मलाई की मोटी मोटी परतों के बीच रबड़ी रखी जाती थी। इस पर केसर, मिसरी, गुलाब की पंखुड़ियां डालकर उसके टुकड़े काट दिए जाते और नवाब साहब को परोसे जाते। जिसे ‘बलाई का टुकड़ा’ कहा गया।

बलाई का टुकड़ा लखनऊ के नवाबों का फेवरेट मीठा हुआ करता। अब बलाई का टुकड़ा आम आदमी को नसीब नहीं था। महंगा और तसल्ली से बलाई का टुकड़ा बनाना उस जमाने में कामकाजी आदमी के लिए मुश्किल था। सोचिए तब आम इंसान ने क्या किया होगा? उसने डबल रोटी ली, डबल रोटी को घी में डीप फ्राई करने के बाद उसे शक्कर मिले दूध में भिगोया और उस पर रबड़ी डाली। मोटी-मोटी तह लगा ली और उसे काटकर खाने लगा।

चूंकि ‘बलाई का टुकड़ा’ नवाब साहब की डिश थी और शाही दस्तरख्वान में पेश होती थी तो, इसे ‘बलाई का टुकड़ा’ बोला नहीं जा सकता था तो लोगों ने सोचा क्यों न इसे ‘शाही टुकड़ा’ नाम दिया जाए। इस तरह से शाही टुकड़ा ईजाद हुआ और बलाई को ब्रेड ने रिप्लेस कर दिया। दोनों डिश में इतनी समानता है कि लखनऊ का बलाई टुकड़ा और शाही टुकड़ा को पास-पास सजा दीजिए तो दोनों को पहचानना मुश्किल होता है। क्योंकि दोनों की बनावट और टेक्सचर एक जैसा होता है।

यह मिठाई देखने में जितनी लजीज होती है उससे कहीं ज्यादा इसका जायका होता है।

यह मिठाई देखने में जितनी लजीज होती है उससे कहीं ज्यादा इसका जायका होता है।

दुध की चाशनी में डूबा शाही टुकड़ा

लेकिन नवाबी रसोई में बने शाही टुकड़ा की एक और खासियत थी जो इतनी आम नहीं थी। डबल रोटी के मोटे किनारों को काटकर घी में सुनहरा तला जाता था और उसे दूध की चाशनी में डूबाया जाता था। दूध की चाशनी की बनाने के लिए दूध में बराबर चीनी की डालकर पकाया जाता और दूध को गाढ़ा किया जाता। इस गहरे दूध में ब्रेड के टुकड़े डूबोकर निकाले जाते और एक के एक सजा दिए जाते। घी में सुनहरे-कुरकुरे तली और दूध की चाशनी में डूबकर बाहर निकली ब्रेड के इन टुकड़ों को एक बड़े से बर्तन में सजाया जाता और ऊपर से रबड़ी डाली जाती है। रबड़ी की परतों में इलायची पाउडर छिड़का जाता और गुलाब जल का छींटा दिया जाता है ताकि शाही टुकड़े में इलायची और गुलाब जल की महक रच बस जाए।

शाही टुकड़े की वैरायटी

शाही टुकड़े की कई वैरायटी हैं, जिनमें से एक है मध्य पूर्व का ईश एस सेर्नी, जिसे ‘पैलेस ब्रेड’ के नाम से भी जानते हैं। इसे सूखी ब्रेड को चीनी की चाशनी और शहद में उबालकर ‘अर्क-ए-गुलाब’ और गोल्डन कैरेमल से सजाकर बनाया जाता है। शाही टुकड़ा का हैदराबादी वर्जन डबल का मीठा है, जिसे लोग खूब पसंद करते हैं। ब्रेड को हिंदी में डबल रोटी कहा जाता है, इसलिए ब्रेड से बने शाही टुकड़े को हैदराबाद में ‘डबल का मीठा’ का नाम मिला। डबल का मीठा को भी रबड़ी से सजाया जाता है।

शाही टुकड़ा देखकर मचल जाए मन, लेकिन संभलकर खाएं

शाही टुकड़ा एक हाई कैलोरी फूड है जिससे वजन बढ़ता है। डायबिटीज मरीज को शाही टुकड़ा खाने से परहेज करना चाहिए। यह ब्लड शुगर लेवल बढ़ा देता है। हद से ज्यादा शाही टुकड़ा खाने से नसों कोलेस्ट्रॉल की समस्या हो सकती है। शादी टुकड़ा खाएं जरूर, स्वाद और मजा दोनों लें लेकिन संभलकर।

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