Aadya believes that one day Shankar will fall in love with her, so she performs the duties of a wife and daughter-in-law. | प्यार जबरदस्ती नहीं होता: आद्या को विश्वास है कि एक दिन शंकर को उससे प्यार हो ही जाएगा, इसलिए पत्नी-बहू के कर्तव्य निभाती है

57 मिनट पहले

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“ऐसा लगता है कि हम तीनों बहनों में से धैर्य का शरबत केवल तूने ही पिया है और वह भी न जाने कितना सारा। वैसे भी सबसे छोटी है, उस पर से चुलबुली थी बचपन में। मां की लाडली भी तू ही थी। जब मां तुझे चूमती होंगी तो उनके धैर्य का रस तेरे गालों पर चिपक जाता होगा,” रज्जो दीदी बोलीं। हालांकि उन्होंने कहा हंसते हुए था, पर साफ लग रहा था कि वह व्यंग्य कर रही हैं।

“सही कह रही हैं आप रज्जो दीदी। बचपन की हमारी छोटी अब एकदम गंभीर और सयानी भी हो गई है। बहनों से बातें भी छिपाने लगी है, क्योंकि धैर्य की वह पोटली जो मां ने इसे ही सौंपी थी शायद, अपने से चिपकाए सदा चलती है,” मंजू ने उनकी हां में हां मिलाते हुए कहा।

“आप दोनों ऐसा क्यों कह रही हैं?” आद्या आश्चर्य से दोनों बहनों को देख रही थी।

“क्यों गलत कहां कहा है रज्जो दीदी ने। शंकर तुझे प्यार तो छोड़, पसंद भी नहीं करता। यह सब को दिखता है, और तूने कभी अपना दर्द हमसे बांटा तक नहीं। कोई शिकायत नहीं करती कभी! बाबा रे! इतना धैर्य तो हममें नहीं है। मां ने सिखाया था कि सहन करने की शक्ति होनी चाहिए, पर गलत बात पर भी चुप रहना तो नहीं सिखाया था। शंकर से क्यों नहीं करती कोई तू कोई सवाल? अपने सास-ससुर से ही पूछ जिन्होंने खुद आकर तेरा रिश्ता मांगा था पापा से। वही बताएं कि जब उनके बेटे की मर्जी नहीं थी तो क्यों किया यह विवाह। पापा होते तो तुझे एक दिन भी नहीं रहने देते उस घर में।” रज्जो दीदी की आंखें नम थीं और गला भर आया था।

“हमारी सुने तो क्या हम नहीं मदद करेंगे इसकी? लेकिन यही चुपचाप सब सहना चाहती है तो हम कर ही क्या सकते हैं?” मंजू दीदी ने आद्या के कंधे को झिंझोड़ते हुए कहा। “आज के जमाने में कौन बर्दाश्त करता है पति की बेरुखी। पति-पत्नी हैं, केवल इसलिए साथ रहना और अपनी-अपनी जिम्मेदारियां निभाते जाना ही तो काफी नहीं है। प्यार तो हर रिश्ते में चाहिए और पति की चाहत ही न मिले तो क्यों रहना साथ? छोड़ दे उसे।”

“आप दोनों क्यों नहीं समझ रही हैं? शंकर बेशक मुझे पसंद न करें, लेकिन मुझे तो उनसे प्यार हो गया है। नहीं छोड़ सकती उन्हें। जैसे भी होगा जिंदगी काट लूंगी। देख लेना आप दोनों एक दिन उन्हें अपना बना कर ही रहूंगी,” आद्या ने दृढ़ता से कहा।

“करती रहे कोशिश। तेरा धैर्य तुझे मुबारक, लेकिन कभी जरूरत हो हमारी तो हिचकना मत। तेरे दोनों जीजा शंकर को सबक सिखा देंगे। हम सब तेरे साथ हैं।”

कितने दिनों बाद आज तीनों बहनों ने लंच का प्रोग्राम बनाया था। डोसा, इडली खाने की शौकीन बहनें अपने पसंदादी रेस्टोरेंट में मिलीं थीं। सांभर व नारियल की चटनी के साथ डोसा खाते हुए आद्या के जीवन का दोनों बहनें आकलन भी करती रहीं। स्वाद बेमजा हो गया था उसका, लेकिन सदा की तरह चुपचाप सुनती रही थी। विरोध करना उसे कभी नहीं आया, बल्कि चीजों को सुलझाने के तरीकों पर हमेशा विचार करती है।

‘सबक सिखा देंगे,’ आद्या को तकलीफ होती है ऐसी बातों को सुनकर। किसी को सबक सिखाना या अपमान करना, उसे बदला लेने का आसान तरीका लगता है, लेकिन उसे शंकर से बदला नहीं लेना है। हां, बदलना जरूर है…नहीं, उसकी आदतों को नहीं, केवल आद्या के प्रति उसके नजरिए को! शादी हुए सात महीने हो गए हैं, साथ रहते-रहते, संवादों का जो सिलसिला होता है, वह नापसंदगी को पसंद में बदल ही देता है। खासकर अगर सामने वाला न कभी विरोध जताए, न शिकायत करे…शंकर पहले की तरह रूखा व्यवहार अब नहीं करता है उसके साथ। सहजता बनाए रखने का भी प्रयत्न करता है…उसे जितना समय चाहिए, वह देगी…कोई जल्दी नहीं है आद्या को…यहीं तो उसका धैर्य काम आता है। फिर सास-ससुर भी तो उसके साथ हैं, चाहे ग्लानि की वजह से या वास्तव में वे उसे बेटी मानते हैं!

आद्या जानती है और समझती भी है कि शंकर कितना लड़ रहा होगा अपने आप से। एक तरफ प्यार को खो देने का दर्द, दूसरी तरफ आद्या को प्यार न दे पाने का अपराधबोध…हालांकि उसने कभी भी बुरा सुलूक नहीं किया आद्या के साथ, न ही गलत बोला। खुशी-खुशी सारे दायित्व निभाता है, उसको किसी तरह से तकलीफ न पहुंचे, इस बात का ध्यान रखता है, लेकिन प्यार का एहसास नहीं रखता…दोष नहीं देना चाहती वह शंकर को। वह किसी और से प्यार करता है, और प्यार किसी से जबरदस्ती नहीं किया जाता। आद्या को विश्वास है कि एक दिन शंकर को उससे प्यार हो ही जाएगा, इसलिए बिना उलाहना दिए, पत्नी और बहू के कर्तव्य निभाती है।

शंकर भी सब समझता है। सही तो नहीं कर रहा वह आद्या के साथ। उसका बहुत ख्याल रखती है, उसकी खुशी की खातिर कुछ भी कर सकती है। ऐसा जीवनसाथी पाकर उसे अपने भाग्य को सराहना चाहिए और झूठ नहीं कहेगा, सबके सामने बेशक वह उसकी तारीफ नहीं करता, पर जब अपने मन को टटोलता है तो आद्या में चाहकर भी वह कोई कमी नहीं ढूंढ पाता है। उसकी बेरुखी के बावजूद पत्नी के हक को लेकर कभी ताना नहीं दिया। न जाने कितना धैर्य है उसमें…

धीरे-धीरे शंकर को महसूस हो रहा है कि आद्या उसे अच्छा लगने लगी है। वह उसके मन की देहरी पर आहिस्ता-आहिस्ता कदम रख रही है। जब वह उसके आसपास होती है, तो उसे अच्छा लगता है। उसकी आंखों से झलकते प्यार को कई बार अंजुरी में भरने का दिल भी किया है। कभी उसे चूमने की चाह भी दिल में किसी चकवी की पुकार की तरह उठी भी है जो अपने प्रिय को ढूंढ रही होती है।

लेकिन तब एक हिचक उसे आद्या के पास जाने से रोक लेती है, जबकि आद्या उसके आसपास बहुत सहजता से बनी रहती है। शंकर उससे प्यार नहीं करता, इस बात के बावजूद वह उसके करीब आने से झिझकती नहीं है। कभी उसकी शर्ट का टूटा बटन जब वह लगाती है तो उसकी सांसें शंकर तो बेसुध करने लगती हैं। वह चाहने लगा है उसे बांहों में भरना, पर रुक जाता है। बिना प्यार के उसे चूमना उसे धोखा देना नहीं होगा क्या? शारीरिक आकर्षण के नाम पर वह उसे छल नहीं सकता!

या उसे आद्या से प्यार होने लगा है? या हो ही गया है? उसके लिए सोलह सोमवार के व्रत रखे हैं, कहती है अपने शिव-शंकर को पाना ही है। विश्वास और दृढ़ता…उसके धैर्य का ही हिस्सा हैं! पीछे कितना बीमार हुआ था। दिन-रात देखभाल करती रही और एक बार भी माथे पर बल नहीं पड़े। थकती तो वह भी होगी? जताती क्यों नहीं?

“तुम मेरी आदतें बिगाड़ रही हो। मेरे सारे काम करती हो। मेरी शक्ति बन रही हो तुम। शिव की शक्ति…जानती हो न आद्या पार्वती का ही एक नाम है। क्यों करती हो मुझसे इतना प्यार, जबकि मैं…दुविधा में रहा हमेशा,” एक दिन बांध टूट ही गया था शंकर का।

“प्यार पर किसी का बस नहीं होता, लेकिन विकल्प दो ही होते हैं हमेशा जिंदगी में…हां या ना। बीच का कोई रास्ता चुनने का मतलब है कि केवल दुविधा में ही फंसे रहना। या तो तुम हिम्मत दिखाते और अपने माता-पिता को मना कर देते कि तुम्हें यह विवाह नहीं करना है और बता देते कि किसी और से प्यार करते हो। यह विकल्प तुमने नहीं चुना तो दूसरा विकल्प था कि मुझसे विवाह हो गया था तो मुझे अपना लेते। अपनाना शुरू में आसान नहीं होता तो भी कोशिश तो कर सकते थे। इंडिफरेंट एटीट्यूड रखते हुए कि ‘मैं हूं या नहीं,’ इससे तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, अपने कंठ में विष उतारते रहना कोई विकल्प नहीं था। तुम भीतर ही भीतर घुटते रहे, तुम्हें क्या लगता है मैं कुछ समझती नहीं थी। बहुत पीड़ा भी होती थी तुम्हें दर्द के विष को अपने मन में कलश में छिपाते देख। जिसे तुमने चाहा, वह तो हमारी शादी होते ही तुम्हें छोड़ विदेश चली गई और वहीं किसी एनआरआई से शादी कर ली। चौंको मत। जानती हूं तुम्हें नहीं पता। मैंने जब उससे कॉन्टैक्ट करने की कोशिश की ताकि तुम्हें उससे मिला सकूं, तभी पता चला था।”

“सच मैं नहीं जानता था कि उसने वहां विवाह कर लिया है। जब भी बात हुई, यही कहा उसने कि अब वह भारत लौटना नहीं चाहती। वह मुझसे झूठ बोलती रही और मैं उसके प्यार को सच मान तुम्हें तकलीफ पहुंचाता रहा। फिर तुम्हारी सहनशक्ति मुझे तुम्हारे नजदीक ले आई। हो गया है मुझे तुमसे प्यार आद्या। माफ कर सकोगी मुझे?”

“तुम्हें कभी दोषी माना ही नहीं तो माफी कैसी? शंकर और आद्या कभी अलग हो ही नहीं सकते।” आद्या की आंखों में दृढ़ता की चमक फिर एक बार कौंध गई।

शंकर की बांहों में प्यार के एहसास को महसूस करती आद्या सोच रही थी दोनों बहनों को फोन करके बताना होगा कि उसने शंकर को पा लिया।

-सुमन बाजपेयी

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